शनिवार तक कड़ी सुरक्षा में चौबंद
अयोध्या की सड़कों पर रविवार तड़के से ही 'जय श्रीराम', 'मंदिर वहीं बनाएंगे' जैसे नारों की गूंज सुनाई पड़ने लगी.
एक दिन पहले तक शांत दिख रहे इस छोटे, लेकिन मशहूर शहर में हलचल एकाएक बढ़ी और भीड़ का अंदाज़ा लगाने
वालों के आंकड़े एक बार ग़लत साबित होते दिखने लगे.
धर्म सभा का कार्यक्रम बड़ी भक्तमाल की बगिया में रखा गया था जिसकी
दो वजहें थीं- एक तो ये शहर से थोड़ा बाहर था, दूसरे विश्व हिन्दू
परिषद ने भक्तों के जितनी बड़ी संख्या में पहुंचने का अनुमान लगाया था, उसके लिए वैसे ही बड़े परिसर की ज़रूरत थी.
कार्यक्रम की शुरुआत 11 बजे से होनी थी, लेकिन संतों और लोगों का जुटना सुबह से ही शुरू हो चुका था. बड़े
से मंच पर सौ से भी ज़्यादा संत विराजमान थे जिनमें नृत्यगोपाल दास, राम भद्राचार्य, रामानुचार्य जैसे कई बड़े नाम भी थे.
कार्यक्रम स्थल की ओर जाने वाली सड़कों पर भीड़ की वजह से कई जगह
ज़बर्दस्त जाम लगा, हालांकि लोगों को रोकने के लिए
जगह-जगह बैरिकेडिंग की गई थी लेकिन सड़कों पर लोगों की भीड़ के साथ गाड़ियां भी
रेंगती मिलीं. धर्म सभा में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी पहुंचे थे और
जगह-जगह वो भी भीड़ से या फिर लंच पैकेट के लिए संघर्ष करते मिले.
शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे के संवाददाता सम्मेलन के बाद धर्म सभा
स्थल तक पहुंचने में कम से कम दो घंटे लग गए. ये दूरी क़रीब पांच किमी थी. उद्धव
ठाकरे का संवाददाता सम्मेलन लखनऊ-फ़ैज़ाबाद हाइवे पर स्थित एक होटल में था और इस
हाइवे पर लगातार वो बसें दौड़ रही थीं जिनमें बैठकर लोग धर्म सभा की ओर जा रहे थे.
बसों के भीतर लोगों की संख्या भले ही कम रही हो, लेकिन उनके नारों की गूंज ज़बर्दस्त थी और मीडिया वालों को देखकर
नारों की आवाज़ और भक्तों की ऊर्जा में अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा सकती थी.
संघ का सहयोग था
धर्म सभा स्थल तक पहुंचने के बाद भी अंदर घुसने में लोगों को जमकर
संघर्ष करना पड़ रहा था. वजह ये थी कि लोग अंदर भी जा रहे थे और बाहर भी आ रहे थे.
बाहर आने वालों में से कुछ का कहना था कि उन्होंने संतों की बात सुन ली, जबकि कई लोग ग़ुस्से में चले आ रहे थे कि वो अंदर तक जा ही नहीं
पाए, इसलिए लौट रहे हैं.
धर्म सभा का आयोजन वीएचपी की ओर से किया गया था, लेकिन इसमें संघ परिवार का सहयोग उसे पूरी तरह से मिला और मंच से
इस बारे में घोषणा भी की गई. भारतीय जनता पार्टी ने धर्म सभा से दूरी ज़रूर बना
रखी थी, लेकिन बीजेपी के कई नेताओं और विधायकों के होर्डिंग्स ये बता रहे
थे कि बीजेपी नेताओं ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है.
भीड़ में साथ चल रहे बहराइच से आए एक सज्जन पूछ बैठे कि आपके हिसाब
से कितने लोग आए हैं? मेरी अनभिज्ञता का जवाब उन्होंने 'लाखों में' कहकर दिया. लेकिन पत्रकारों से बातचीत
में इसके बारे में अलग-अलग जानकारी मिली.
ऐसे जोशीले भाषणों के बीच भीड़ से 'याचना नहीं अब रण
होगा' जैसे नारे भी लग रहे थे, वहीं मंच पर मौजूद कई संत ऐसे नारे
लोगों से दोहराने की अपील भी कर रहे थे. तमाम नवयुवकों की टोली इस तरह के बैनर और
तख्तियां लेकर भी वहां पहुंची थी.
लेकिन मीडिया के कैमरों के पास मौजूद दर्जनों नवयुवक इस मुद्दे पर
राजनीति करने वालों को कोस भी रहे थे और ऐसे नारे लगा रहे थे जो शायद मंच पर बैठे
लोगों तक भी पहुंची और अच्छी नहीं लगी. मंच से किसी संत ने साफ़तौर पर कह दिया कि
ये सब किसी के 'दलाल' लगते हैं जो कार्यक्रम में विघ्न डालने
आए हैं.
कार्यक्रम के बाद लोगों को राम मंदिर निर्माण में सहयोग करने की
शपथ भी दिलाई गई. शपथ ग्रहण तक वैसे तो भीड़ छंट चुकी थी, लेकिन शपथ के मजमून में ये भी शामिल था कि 'वीएचपी और संघ ने अब तक इस दिशा में सार्थक कार्य किया है, आगे भी करेगी, ऐसा हमें विश्वास है और उसे हमारा
पूरा समर्थन है.'
"होइहै
सोइ जो राम रचि राखा..."
कार्यक्रम में शामिल होने आए कुछ युवकों से बात करने पर पता चला कि
उन्हें मंदिर के लिए माहौल बनाने के मक़सद से बुलाया गया था. बस्ती से आए एक युवक
का कहना था कि धर्म सभा इसलिए बुलाई गई थी ताकि ये देखा जा सके कि हिन्दू सो तो
नहीं गए हैं. ये पूछने पर कि मंदिर निर्माण के बारे में संतों ने क्या कहा, तो उस युवक के मुताबिक, ''अब पता लग गया है कि हिन्दू जाग गया
है, अब कभी भी मंदिर निर्माण शुरू हो जाएगा.''
इन युवकों की निग़ाह में उनके जोश के आगे सुप्रीम कोर्ट, संविधान, अध्यादेश जैसी चीजें बौनी लग रही थीं. उन्हें उम्मीद थी मंदिर निर्माण जल्द ही शुरू होगा, तब तक बाराबंकी से आए और एक इंटर कॉलेज में पढ़ाने वाले व्यक्ति ने उन्हें टोका- "अभी नहीं, ये 11 दिसंबर की धर्म संसद में तय होगा."
हँसते हुए युवकों ने कहा- "यानी फिर तारीख़ मिल गई"
बहरहाल, क़रीब ढाई किमी. तक पैदल चलने के बाद
हम अयोध्या शहर के भीतर पहुंचे और एक चाय की दुकान पर बैठे. ठीक उसी समय 81 साल के एक बुज़ुर्ग जो गोरखपुर से आए थे, इसी मक़सद से दुकान पर बैठ गए. बातचीत में उन्होंने चिंता जताई कि
मंदिर अब तक नहीं बन पाया.
लेकिन क्या इस धर्म संसद के बाद मंदिर का मार्ग प्रशस्त होगा, इस सवाल के संक्षिप्त जवाब में वो काफी कुछ कह गए, "होइहै सोइ जो राम रचि राखा..."
राम मंदिर पर अयोध्या में संतों की धर्मसभा की आंखों देखी
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