इमेज कॉपीरइटGETTY IMAGESImage caption1969 से 1972 के बीच अमरीका ने चांद पर छह मिशन भेजे
'इंसानियत के लिए ये एक छोटा कदम, पूरी मानव जाति के लिए बड़ी छलांग साबित होगा.' चांद पर पहली बार कदम रखने वाले इंसान ने ये बात कही थी.
वो 21 जुलाई 1969 की तारीख थी और नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर कदम रखकर इतिहास रच दिया था. इसके बाद पांच और अमरीकी अभियान चांद पर भेजे गए.
साल 1972 में चांद पर पहुंचने वाले यूजीन सेरनन आख़िरी अंतरिक्ष यात्री थे. उनके बाद अब तक कोई भी इंसान चांद पर नहीं गया है.
लेकिन करीब आधी सदी के बाद अमरीका ने एलान किया है कि वो चांद पर इंसानी मिशन भेजेगा. राष्ट्रपति ट्रंप ने इससे जुड़े एक आदेश पर सोमवार को हस्ताक्षर किए.
लेकिन सवाल उठता है कि अमरीका या किसी और देश ने करीब आधी सदी तक चांद पर किसी अंतरीक्षयात्री को क्यों नहीं भेजा?
इमेज कॉपीरइटAFPImage captionनील आर्मस्ट्रॉन्ग चांद पर जाने वाले पहले इंसान थे
बजट पर फंसता है पेंच
दरअसल चांद पर किसी इंसान को भेजना एक महंगा सौदा है. लॉस एंजेलिस के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में खगोल विज्ञान के प्रोफेसर माइकल रिच कहते हैं, "चांद पर इंसानी मिशन भेजने में काफी खर्च आया था, जबकि इसका वैज्ञानिक फायदा कम ही हुआ."
विशेषज्ञों के मुताबिक इस मिशन में वैज्ञानिक दिलचस्पी से ज्यादा राजनीतिक कारण थे. अंतरिक्ष नियंत्रण की होड़ में ये किया गया.
साल 2004 में अमरीका के तत्कालिन राष्ट्रपति डब्ल्यू जॉर्ज बुश ने ट्रंप की ही तरह इंसानी मिशन भेजने का प्रस्ताव पेश किया था. इसमें 104,000 मिलियन अमरीकी डॉलर का अनुमानित बजट बनाया गया. लेकिन भारी-भरकम बजट के चलते उस वक्त भी ये प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया.
विशेषज्ञों को इस बार भी ऐसा ही होने का डर सता रहा है, क्योंकि डोनल्ड ट्रंप ने आदेश पर हस्ताक्षर करने से पहले सिनेट से परामर्श तक नहीं किया.
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चांद पर जाने की दिलचस्पी बढ़ी
माइकल रिच का कहना है, "क्योंकि ऐसे मिशन के वैज्ञानिक फायदे कम है, इसलिए इसके खर्चीले बजट के लिए कांग्रेस की मंजूरी हासिल करना एक मुश्किल काम है."
एक और कारण ये है कि नासा सालों से दूसरे अहम प्रोजेक्ट को पूरा करने में लगा रहा है.
इन सालों में नासा ने कई नए उपग्रह, बृहस्पति पर खोज, अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की कक्षा में लांच, अन्य आकाशगंगाओं और ग्रहों पर शोध किए हैं.
नासा सालों से चांद पर दोबारा इंसानी मिशन भेजने की वकालत करता रहा है. उसने इसके लिए अभी भी कई वैज्ञानिक कारण होने की बात कही है.
नासा का मानना है कि इंसान के चांद पर पहुंचने से कई नई जानकारियां मिलेंगी. बीते कुछ सालों में चांद पर जाने की दिलचस्पी बढ़ी है.
इमेज कॉपीरइटBLUE ORIGINImage captionनई तकनीकों के चलते चांद पर रॉकेट भेजना अब सस्ता हुआ है
चांद पर पहुंचने की योजना
सरकारी और प्राइवेट तौर पर कोशिशें पहले भी हुई हैं, जिसमें ना सिर्फ चांद पर जाने की घोषणा की गई बल्की चांद पर इंसानी बस्ती बनाने जैसी महत्वकांशी योजनाएं भी पेश की गईं.
ये योजनाएं कम खर्च वाली तकनीक और स्पेसक्राफ्ट के निर्माण पर आधारित है. चीन ने 2018 जबकि रूस ने 2031 तक चांद पर पहुंचने की योजना बनाई है.
इस बीच कई प्राइवेट उपक्रमों ने स्पेस बिज़नस मॉडल लाने की भी बात कही है, जिसमें चांद पर खनिजों का खनन और चांद से लाए गए पत्थरों को बेशकीमती नगों की तरह बेचने की योजना है.
अमरीका अंतरिक्ष की इस रेस में किसी से पीछे नहीं रहना चाहता. नासा की योजना के लिए इस बार बनाया गया बजट आम बजट का एक फीसदी है. जबकि पिछले अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए ये 5% था.