अमरीका, रूस और चीन में ये हथियार बनाने की भुत सर पे स्वर हो गया हैं जाने पूरी कहानी .





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Image captionदशकों पहले अमरीका ने हाइपरसोनिक विमान के लिए तैयारियां शुरू कर दी थीं

ऐसा 'स्टार वॉर्स' की फ़िल्मों में देखा जा चुका है कि कोई मिसाइल 'इंटरस्टेलर स्पीड्स' से जाती है.
यह वह गति होती है जो ध्वनि के साथ-साथ किसी भी रक्षा प्रणाली को भी पीछे छोड़ सकती है.
ये 'हाइपरसोनिक हथियार' हैं. शीत युद्ध के दौरान इन हथियारों की चर्चा होती रही है लेकिन हालिया दिनों में यह सच होते दिखाई होते हैं.
बीजिंग प्रशासन के अनुसार, चीनी सरकार ने पिछले सप्ताह घोषणा की थी कि उसने पहली बार स्टारी स्काई-2 नामक हथियार का परीक्षण किया है जिसकी रफ़्तार 7,344 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है.
यह ध्वनि की गति से छह गुना तेज़ है और इसकी रफ़्तार इतनी तेज़ है कि वह दो घंटे में चीन से इक्वाडोर तक पहुंच सकती है.
हालांकि, ऐसा नहीं है कि यह कोई पहला हथियार है.

24,140 कि.मी. प्रति घंटे की रफ़्तार

रूस ने पिछले महीने बताया था कि उसका मिग-31एस विमान कैस्पियन सागर की निगरानी कर रहा है जिस पर अप्रैल से किंजल नामक हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात है.
रूसी रक्षा मंत्रालय ने यह भी बता चुका है कि वह 'एवेनगार्द' नामक मिसाइल प्रणाली जल्द तैयार कर लेगा जो अंतरमहाद्वीपीय दूरी को तय करेगा. इसकी हाइपरसोनिक रफ़्तार 24,140 किलोमीटर प्रति घंटा होगी.



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2015 में अमरीकी वायुसेना ने घोषणा कर दी थी कि वह 2023 तक हाइपरसोनिक हथियार तैयार कर लेगा और इसकी प्रगति को लेकर उसने आंकड़े भी जारी किए थे लेकिन रूस और चीन द्वारा इन हथियारों को बनाए जाने की ख़बर के बाद अमरीका ने चिंता शुरू कर दी है.

हाल में अमरीकी मिसाइल रक्षा एजेंसी ने 2019 के लिए बजट में हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली विकसित करने के लिए 12 करोड़ अमरीकी डॉलर की मांग की थी. 2016 में ही इसी उद्देश्य से दफ़्तर ने 7.5 करोड़ अमरीकी डॉलर मांगे थे.
अमरीकी रक्षा बलों के साथ काम करने वाले थिंक टैंक रैंड कॉर्पोरेशन में हाइपरसोनिक हथियारों के विशेषज्ञ जॉर्ज नकूज़ी ने बीबीसी से कहा, "अमरीका के पास अभी मिसाइल रोधी प्रणाली है जिसको अभी तक मालूम नहीं है कि वह नए हमले का कैसे सामना करेगी लेकिन उसके पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है जो इन नए उपकरणों का सामना कर सके."
लेकिन यह हाइपरसोनिक हथियार क्या हैं और इनको लेकर क्यों चिंता की जाती है?



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Image captionहाइपरसोनिक विहिकल हमेशा हथियार नहीं हो सकते बल्कि लड़ाकू विमान या हवाई जहाज़ हो सकते हैं

हाइपरसोनिक हथियार क्या हैं?

वॉशिंगटन स्थित थिंकटैंक कार्नेगी एंडोमेंट फ़ॉर इंटरनेशनल पीस में परमाणु नीति कार्यक्रम में सह-निदेशक जेम्स एक्टन बीबीसी से कहते हैं कि इसकी परिभाषा को अगर समझें तो ये ऐसे हथियार हैं जिनकी रफ़्तार ध्वनि की गति से तेज़ है. यानी कि 1,235 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार.
विशेषज्ञ कहते हैं, "सैद्धांतिक रूप से ये पांच, 10 और 20 गुणा से अधिक तेज़ जा सकते हैं या ध्वनि की गति से तेज़ होगी."
  • हाइपरसोनिक डिस्पलेस्मेंट विहिकल (एचजीवी) वो ग्लाइडर होते हैं जो अंतरिक्ष में जाते हैं और ऊंचाई पर जाने के बाद अपने स्थान पर पहुंचती है.
  • हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल (एचसीएम) बुनियादी तौर पर एक ऐसा हथियार होता है जो तेज़ी से बढ़ता है और ध्वनि की सीमाओं को कई बार तोड़ता है.
दोनों ही हथियारों की गति 6,115 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक जा सकती है.
एक्टन के अनुसार, शीत युद्ध के बाद से ही इसके निर्माण की आकांक्षा रही है लेकिन इसको विकसित करने में कई तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.
वह कहते हैं, "हाइपरसोनिक हथियारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती तापमान है क्योंकि वे ऊंचे तापमान पर जा सकते हैं जिससे उनकी गलने की आशंका रहती है. ऐसी सामग्री विकसित करने की ज़रूरत है जो गर्मी को नियंत्रित कर सकें."
उनका कहना है कि दूसरी समस्या इंजन को लेकर है कि कैसे उनको तेज़ बनाए ताकि वह लंबी दूरी तक की रफ़्तार बनाए रखें और इंजन में धमाका न हो.



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Image captionअमरीका ने 2010 में हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल पेश की थी

नकूज़ी यह सवाल उठाते हैं कि इनके साथ रणनीतिक चुनौती यह है कि इन हथियारों की उड़ान अप्रत्याशित है जिसकी रफ़्तार बदलती रहती हैं और इससे रक्षा के लिए न ही अमरीका और न ही किसी और देश के पास कोई रक्षात्मक प्रणाली है.
हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार इसको लेकर ख़ुशख़बरी यह है कि तीन देश ही इसको विकसित कर सकते हैं लेकिन बुरी ख़बर यह है कि इसके ज़रिए नई 'हथियारों की दौड़' शुरू हो रही है.
एक्टन सहमत हैं कि तीन राष्ट्र ही 'दौड़' में हैं जो इन हथियारों पर हावी हैं.
भौतिक विज्ञानी कहते हैं कि चीन रॉकेट में ज़्यादा रुचि ले रहा है और रूस ग्लाइडर की ओर ध्यान केंद्रित कर रहा है. मॉस्को के अनुसार, अगले साल वह अपनी लंबी दूरी की अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल तैनात कर सकता है.
नकूज़ी अमरीका को लेकर कहते हैं कि वहां के विशेषज्ञ इस क्षेत्र में 30 से अधिक सालों से काम कर रहे हैं लेकिन अभी तक जो जानकारी है उसके अनुसार उन्होंने कोई तकनीक विकसित नहीं की है, इसका कारण पैसा या दूसरे कारण हो सकते हैं.



BBC

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