विज्ञान के गुरुत्वाकर्षण बल ने सरल नियम पर बनी ग्रेविटी लाइट प्रकाश के लिए मुफ्त का साधन है

New News : बिजली से बल्ब जलाकर प्रकाश करने की जगह जल्द ही ग्रेविटी लाइट लेने वाली है | क्योंकि दुनिया भर में बिजली की समस्या को एक विकट समस्या के तौर पर देखा जाता है| बिजली पैदा करने के   स्त्रोत सीमित हैं| ऐसे में ग्रेविटी लाइटयानि गुरुत्वाकर्षण बल से प्रकाश करने का विकल्प बहुत   ही क्रन्तिकारी साबित होने      जा रहा है| इसका कारण यह है कि ग्रेविटी लाइट से प्रकाश करना बहुत ही सस्ता और असीमित साधन    है |   लंदन में ग्रेविटी लाइट का प्रयोग किया भी जा रहा है|

What is gravity light and how it works


ग्रेविटी लाइट एक ऐसी तकनीक है जिसमे गुरुत्वाकर्षण बल से लाइट बनाई जाती है| और वो भी बहुत ही सरल नियम से | लंदन के बाद अब एशिया और अफ्रीका के गरीब देशों में जहाँ अभी तक बिजली नही पहुँच पाई है ये तकनीक धीरे-धीरे पहुँच रही है और यहाँ के गरीब लोगों का जीवन अंधकार से निकलकर प्रकाश की और जा रहा है| ऐसा संभव हुआ है ग्रेविटी लाइट यानि गुरुत्वाकर्षण बल के कारण |
ग्रेविटी लाइट को बाहर से देखने से इसमें एक LED बल्ब और दो छोटे LED लैंप दिखाई देते हैं | इनको लगभग 6 फीट की ऊंचाई पर किसी हुक पर लटका दिया जाता है| इसके भीतर Drive sprocket, Gear train, DC Generator    लगे रहते हैं | इस लाइट को ऊंचाई पर टांगने के    बाद इसके नीचे 10-12 किलोग्राम वज़न का एक बैग लटका दिया जाता है| बैग में वज़न करने के लिए इसमें मिटटी. रेत या फिर बजरी आदि भर दिया जाता है|

ग्रेविटी लाइट के काम करने का सिद्धांत


जब भी लाइट को चालू करना  हो तो इसमें लगी एक डोरी को नीचे खींचना होता है जिससे वो बैग जिसमे भार होता है वो उपर की और चढ़ जाता है| इसके बाद डोरी खींचना बंद किया जाता है| इस बैग के वज़न से लाइट में लगा ड्राइव स्प्रोकेट सिस्टम घुमने लगता है| जो लाइट में लगी पॉलीमर गियर ट्रेन को धीरे-धीरे घुमाना शुरू करती है | यह सिस्टम में लगी DC Generator को 1600 चक्कर प्रति मिनट से घुमाने लगती है| इससे बिजली पैदा होती है जो ग्रेविटी लाइट को जलाती है|
ग्रेविटी लाइट से मिलने वाली रोशनी मिटटी के तेल के दीपक और लैंप से कई गुणा अधिक रोशनी देती है| एक बार में यह 20 मिनट तक प्रकाश देती है| दुबारा रोशनी करने के लिए बस ग्रेविटी लाइट की वही डोरी दुबारा खींचनी पड़ती है| जिससे वो भार फिर से ऊपर की और आ जाये| और इस प्रक्रिया को चाहे जितनी बार किया जा सकता है| इसकी सबसे पॉजिटिव बात ये है कि इसे चलने में कोई एनर्जी जैसे बिजली, सोलर पॉवर या किसी तरह की बैटरी की आवश्यकता नही होती| और न ही किसी प्रकार का कोई प्रदूषण होता है|
भारत में भी कई लोग इस पर अच्छा रिसर्च कर रहे हैं| जल्द ही इसे मार्किट में आने की उम्मीद है|

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