Post Write By-UpendraArya
एक बड़ी रिपोर्ट का कहना है कि मलेरिया जैसी पुरानी और जानलेवा बीमारी से एक पीढ़ी के भीतर दुनिया को मुक्त किया जा सकता है.
हर साल मलेरिया के 20 करोड़ से ज़्यादा मामले सामने आते हैं. जिसमें ज़्यादातर बच्चों का जानें जाती हैं.
रिपोर्ट कहती है कि मलेरिया को ख़त्म करने का सपना अब ज़्यादा दूर नहीं है.
लेकिन मलेरिया के परजीवी मिटाने के लिए साल में अतिरिक्त दो अरब डॉलर की आवश्यकता होगी.
विशेषज्ञों को कहना है कि मलेरिया का उन्मूलन एक बड़ा लक्ष्य है.
मलेरिया क्या है?
मलेरिया ऐसी बीमारी है जो प्लास्मोडियम परजीवी के कारण होती है.
ये परजीवी मादा मच्छर के काटने से लोगों में फैलते हैं.
इस बीमारी से संक्रमित होने पर लोगों को तेज़ बुख़ार आता है और कंपकंपा देने वाली ठंड लगती है. इसके अन्य लक्षणों में एनीमिया भी शामिल है.
ये परजीवी लीवर की कोशिकाओं और लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं.
ये बीमारी मस्तिष्क समेत पूरे शरीर पर क़ब्ज़ा कर लेती है जो काफ़ी घातक हो सकता है.
हर साल लगभग 435,000 लोग मलेरिया के कारण मर जाते हैं जिनमें ज़्यादातार छोटे बच्चे शामिल होते हैं.
अभी तक सब कैसा चल रहा है?
विश्व ने पहले ही मलेरिया के ख़िलाफ़ काफ़ी प्रगति कर ली है.
- साल 2000 से मलेरिया से जूझने वाले देशों की संख्या 106 से घट कर 86 हो गई है.
- मलेरिया के मामले 36% तक नीचे आए हैं
- जिनमें मौत की दर 60% नीचे आई है.
ये सब मच्छरों के काटने को रोकने के तरीकों के कारण हुआ है. जैसे कि कीटनाशक से मच्छरों को मारना, मच्छरों से बचकर सोने के लिए जाली का इस्तेमाल करना और बीमार व्यक्तियों को बेहतर दवाईयां मुहैया कराना.
रिपोर्ट के लेखकों में से एक डॉक्टर विनी म्प्पजू-शुम्बुशो कहते हैं, इतनी प्रगति के बावजूद भी मलेरिया दुनियाभर के समुयादायों को छीन रहा है, लोगों की जानें ले रहा है और आर्थिक क्षमता को भी नुक़सान पहुंचा रहा है.
"यह बात विशेष रूप से अफ्रीका के लिए है, जहां सिर्फ़ पांच देश वैश्विक बोझ का लगभग आधा हिस्सा हैं"
ये रिपोर्ट इतनी ज़रूरी क्यों है?
मलेरिया उन्मूलन यानि दुनिया के चेहरे से मलेरिया को मिटा देना. ये एक बड़ी उपलब्धी होगी.
ये रिपोर्ट विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीन साल पहले ये आकलन करने के लिए गठित की थी कि इसमें कितनी लागत लगेगी और ये करना कितना संभव होगा.
दुनिया के प्रमुख मलेरिया विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों ने मिलकर ये निष्कर्ष निकाला है कि 2050 तक मलेरिया उन्मूलन किया जा सकता है.
लांसेट में प्रकाशित उनकी रिपोर्ट को इस तरह की पहली रिपोर्ट बताया जा रहा है.
रिपोर्ट के मुख्य लेखकों में से एक रिचर्ड फिचेम का कहना है, "बहुत लंबे समय तक मलेरिया से मुक्त होना दूर का सपना दिखाई पड़ता था लेकिन अब 2050 तक मलेरिया को ख़त्म किया जा सकता है"
"ये रिपोर्ट बताती है कि एक पीढ़ी के भीतर मलेरिया को ख़त्म किया जा सकता है"
हालांकि उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ये लक्ष्य का पाने के लिए साहसिक कार्रवाई करने की ज़रूरत भी पड़ सकती है.
क्या ज़रूरत होगी?
रिपोर्ट का अंदाज़ा है कि वर्तमान के रूझानों के आधार पर 2050 तक काफ़ी दुनिया काफ़ी हद तक मलेरिया मुक्त हो जाएगी.
लेकिन तब भी अफ्रीका के सेनेगल से मोजाम्बिक तक में मलेरिया की एक ज़िद्दी बेल्ट रहेगी.
रिपोर्ट कहती है कि 2050 तक विश्व को मलेरिया मुक्त करने के लिए वर्तमान तकनीकों को अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग करने की और मलेरिया से निपटने के लिए नए तरीकों का विकास करने की ज़रूरत होगी.
इसमें जीन-ड्राइव प्रौद्योगिकियों की क्षमता भी शामिल हो सकती है.
अनुवांशिक विरासत के सामन्य नियमों के विपरीत जीन-ड्राइव एक जीन यानि डीएनए के एक टुकड़े को आबादी के माध्यम से फैलाने के लिए मजबूर करती है.
ये सिद्धांत एक रूप से मच्छरों को बांझ बना सकता है और उनकी आबादी के पतन का कारण बन सकता है या उनके परजीवियों के लिए प्रतिरोधी बन सकता है.
एस्वतिनी के राजा मस्वाती और अफ्रीकी मलेरिया समझौते की कुर्सी पर बैठे नेताओं ने कहा, एक पीढ़ी के भीतर मलेरिया को ख़त्म करना महत्वकांक्षी, ज़रूरी और कर लेने लायक़ है.
"मलेरिया के मच्छरों और परजीवियों के ख़िलाफ़ लगातार संघर्ष किया गया है, ये दोनों ही मलेरिया हस्तक्षेप के प्रभाव को विकसित करने के लिए बढ़ रहे हैं."
"हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि इस विचार को प्राथमिकता दी जाए"
इसमें कितनी लागत लगेगी?
हर साल लगभग 4.3 अरब डॉलर मलेरिया पर ख़र्च किया जाता है.
लेकिन मलेरिया से छुटकारा पाने के लिए 2050 तक हर साल दो अरब डॉलर की ज़रूरत होगी.
लेखकों का कहना है कि खोए हुए जीवन और मलेरिया परजीवी और मच्छरों से लड़ने के के ख़िलाफ़ लगातार संघर्ष करने के कारण दवाओं और कीटनाशकों के प्रतिरोध को विकसित करने के लिए व्यवसाय लागत की ज़रूरत पड़ेगी.
रिपोर्ट का बताती है कि हर साल दो अरब डॉलर करना प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन मलेरिया को ख़त्म करने के बाद सामाजिक और आर्थिक लाभ लागत से बहुत अधिक होंगे.
क्या 2050 तक मलेरिया ख़त्म हो पाएगा?
वैश्विक स्तर पर एक बीमारी का उन्मूलन सचमुच एक चुनौती है.
यह अभी तक सिर्फ़ एक बार हुआ है, 1980 में. जब चेचक को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया गया था.
ये काम करने के लिए बड़े प्रयासों की और प्रभाविक टीकों की ज़रूरत होगी.
लेकिन इसका कारण है कि चेचक ही एकलौती ऐसी बीमारी है जिससे मुक्ति पाई गई है और इतिहास में देखें तो ये मालूम चलता है कि किसी भी बीमारी से मुक्ति पाना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.
चेचक के सफल उन्मूलन के बाद साल 2000 पोलियो के उन्मूलन की भी उम्मीद लगाई जा रही थी.
इसके दो दशक बाद प्रारंभिक लक्ष्य और मामलों में 99% की कटौती की गई, हालांकि अंतिम 1% मामलों में ये मुश्किल साबित हुआ है.
नाइजीरिया और अफ्रीका परिणामस्वरूप पोलियो को ख़त्म करने के कगार पर है. लेकिन दो शेष स्थानिक देशों (पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान) में हर बच्चे को टीका मिलना अभी भी मुश्किल साबित हो रहा है.
अभी तक इस पर क्या प्रक्रिया रही है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के जनरल डायरेक्टर का कहना है, "एक शतक से मलेरिया से मुक्ति पाना स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक लिए बड़ा लक्ष्य रहा है, लेकिन ये बहुत चुनौतीपूर्ण भी है."
लेकिन मौजूदा उपकरणों और दृष्टिकोण के साथ तय समयसीमा में विश्व को मलेरिया से मुक्त नहीं कराया जा सकता. इनमें से ज़्यादातर उपकरण पिछली सदी या उससे पहले ही विकसित किए गए हैं.
घना के स्वास्थ्य और विज्ञान विश्वविद्यालय की डॉक्टर फ्रेड बिंका कहती हैं, "मलेरिया से मुक्ति पाना एक बड़ा लक्ष्य है."
"ऐसा करने के लिए महत्वाकांक्षा, प्रतिबद्धता और साझेदारी की आवश्यकता होगी, लेकिन हम जानते हैं कि इससे वापसी में जो मिलेगा वो इसमें किए निवेश के लायक़ होगा. न केवल निरंतरता में जीवन बचाने, बल्कि मानव कल्याण में सुधार, अर्थव्यवस्थाओं को मज़बूत करने और एक स्वस्थ, सुरक्षित और अधिक न्यायसंगत योगदान में भी."