पार्ट 1
जाड़े की सुबह के साढ़े दस बज रहे हैं और बुलंदशहर ज़िले में गन्ने के एक खेत में कटाई जारी है.
कुछ मज़दूरों के बीच खड़े खेत के मालिक प्रेमजीत सिंह ने हमें बगल की बाग में खड़े देखा और हमारी ओर बढ़े.
इस बाग में 3 दिसम्बर को एक दर्जन गायों के अवशेष मिले थे.
उम्मीद के विपरीत उन्होंने बात करने में पहल करते हुए कहा, "हमारे महाव गाँव को नज़र लग गई. जो बात बातचीत से सुलझ रही थी, नेतागीरी के चक्कर में योगेश राज जैसे बाहरवालों ने उसे बिगाड़ डाला."
18 जनवरी को प्रेमजीत की बेटी की शादी होनी है, कार्ड एक महीने पहले बंट चुके हैं. लेकिन पिछले हफ़्ते की सगाई की रस्म को रद्द करना पड़ा.
इलाक़े में तनाव
3 दिसंबर की सुबह प्रेमजीत के बगल वाले बाग में गायों के कंकाल मिलने के बाद इलाक़े में तनाव फैल गया था.
पास के चिंगरावटी थाने का घेराव करने के बाद गुस्साई भीड़ ने आगज़नी की और पुलिसवालों को जान बचाने के लिए भागना पड़ा.
हिंसा में स्याना थाने के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और भीड़ का हिस्सा रहे युवक सुमित की गोली लगने से मौत हो गई थी.
हिंसा के मामले में 20 लोग गिरफ़्तार किए गए हैं जिनमें जीतू फ़ौजी समेत अधिकांश महाव गाँव के युवक हैं.
घटनास्थल से महज़ डेढ़ किलोमीटर दूर महाव के दर्जनों लोग गोकशी का विरोध और दोषियों के ख़िलाफ़ ऐक्शन लेने की माँग करते थाने तक आए थे.
दर्जनों वीडियो के ज़रिए इन लोगों की शिनाख़्त की जा रही है
ज़िन्दगी बर्बादी की कगार पर
प्रेमजीत इन दिनों डरते-डरते खेतों में गन्ने की कटाई करवाते हैं क्योंकि उन्हें डर है पुलिस कहीं उन्हें भी न "उठा ले जाए."
बेटी दिल्ली की एक कंपनी में बिज़नेस डेवलपमेंट मैनेजर है लेकिन अपनी शादी की तारीख़ नज़दीक आने पर भी यहाँ आने को तैयार नहीं.
प्रेमजीत ने कहा, "रिश्तेदार या बेटी के मित्र अब यहाँ आने से डर रहे हैं. हमारी ज़िन्दगी बर्बादी की कगार पर आ पहुँची है लेकिन हिंसा के मुख्य आरोपी अभी भी फ़रार क्यों हैं? हमारे गाँव पर पुलिस का ग़ुस्सा उमड़ पड़ा, लोग पीटे गए पर असल आरोपियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?"
"विधायक देवेंद्र सिंह लोधी के अलावा हमसे मिलने भी कोई न आया. चुनाव के समय तो सभी चक्कर लगाते रहते हैं", कह कर प्रेमजीत दोबारा खेत की तरफ़ लौट गए.
पार्ट 2
"तै कोतवाल को मारेगा? हिम्मत देख इनकी, भई. अब आँसू बहावे से कुछ न होना, जज साहब के सामने बात कीजो".
एक कठोर सी शक्ल वाला पुलिसवाला तीन लोगों के हाथों की हथकड़ियों को एक मोटी रस्सी से बाँधते हुए ये बातें कर रहा था.
ब्रांडेड जींस, जूते और जैकेट पहने तीन नौजवानों में से दो सिसक-सिसक कर रो रहे थे.
महाव गाँव से पच्चीस मिनट की दूरी पर है स्याना जिसकी कोतवाली में बुधवार दोपहर काफ़ी चहल-पहल थी.
मंगलवार शाम इनकी गिरफ़्तारी हुई है क्योंकि चिंगरावठी में हुई हिंसा के बाद वीडियो फ़ुटेज की मदद से जिन 28 लोगों के ख़िलाफ़ नामज़द एफ़ाईआर हुई हैं, उनमें ये तीनों शामिल हैं और अभी तक फ़रार थे.
ग़ुस्से के साथ-साथ लाचारी
ये वही थाना है जहाँ कुछ महीने पहले इंस्पेक्टर सुबोध कुमार का तबादला हुआ था. ये उनकी आख़िरी पोस्टिंग साबित हुई क्योंकि 3 दिसम्बर को हुई हिंसा में उनकी हत्या कर दी गई.
थाने के लोग उस घटना के बारे में बात करने से झिझकते हैं. सभी के चेहरों पर ग़ुस्से के साथ-साथ लाचारी के भाव भी साफ़ दिखते हैं.
नाम न लिए जान की शर्त पर एक पुलिसकर्मी ने बताया, "मजाल न थी किसी की भी कि कोई सिपाही तक पर हाथ उठाए, कोतवाल तो बड़ी चीज़ होती है इलाक़े में. मैंने अब उस घटना के वीडियो देखने बंद ही कर दिए हैं क्योंकि यक़ीन नहीं होता जो हुआ. अब तो किसी पर भी कोई हाथ छोड़ देगा, गोली चला देगा क्या? लेकिन हम किसी भी प्रेशर आने पर भी छोड़ने नहीं वाले उन लोगों को".
तभी पीछे से एक पुलिसकर्मी ने डेस्क पर बैठे सब-इंस्पेक्टर रैंक के कुछ अफ़सरों से पूछा, "दिल्ली से कोई सांसदों की टीम आ रही है, जनाब, आज घटनास्थल का दौरा करने, कौन-कौन जा रहा है वहाँ?".
जिस पुलिसकर्मी से हमारी बात हो रही थी, उसने धीमे से मेरे पास आकर कहा, "जिनकी गाली सुनो, उन्ही की सुरक्षा का भी इंतज़ाम करो."
पार्ट 3
हिंसा के बाद की कार्रवाई के दौरान बुलंदशहर प्रशासन पर राजनीतिक दबाव के आरोप लगे हैं. घटना के कुछ दिन बाद ज़िले के पुलिस अधीक्षक परवीर रंजन सिंह का तबादला लखनऊ कर दिया गया जहाँ अब वे डायल-100 वाली पुलिस सेवा के दफ़्तर में बैठ रहे हैं.
पुलिस अधीक्षक-देहात, रईस अख़्तर, और क्षेत्राधिकारी एसपी सिंह का भी तबादला घटना के कुछ दिन बाद ही कर दिया गया.
इससे ठीक पहले इलाक़े के भाजपा विधायक देवेंद्र सिंह लोधी और सांसद भोला सिंह ने मामले को पुलिस की नाकामी बताया था और राज्य सरकार से अधिकारियों के ख़िलाफ़ ऐक्शन लेने की माँग रखी थी.
ज़ाहिर है, पुलिस महकमे में इसका संदेश बहुत अच्छा तो नहीं गया होगा. ख़ासतौर से तब, जब उनके अपने अफ़सर की दिन-दहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई हो.
राज्य के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह ने बीबीसी से कहा, "पुलिस अधिकारी की हत्या, पुलिस की परम्परा में सबसे जघन्य अपराध है".
उन्होंने कहा, "मेरे पूरे करियर में ऐसा मामला एक ही बार हुआ और 72 घंटो के भीतर आरोपी को निष्क्रिय कर दिया गया था. ऐसे मौक़ों पर इलाक़े छावनियों में तब्दील हो जाते हैं और अगर वीडियो फ़ुटेज के बावजूद कार्रवाई इतनी लंबी चली तो प्रशासन का उदार दृष्टिकोण साफ़ दिखता है."
न्यायिक जाँच की माँग
विक्रम सिंह मानते हैं, "पुलिस या प्रशासन में ऐसे मौक़ों पर प्रेशर हमेशा से रहता आया है लेकिन सीएम आते हैं और और पाँच साल बाद जाते हैं, अफ़सरों को वही करना चाहिए जो प्रण उन्होंने फ़ोर्स से जुड़ते समय संविधान के प्रति लिया था."
स्याना के भारतीय जनता पार्टी विधायक देवेंद्र सिंह लोधी की शिकायत आज भी बरक़रार है.
बीबीसी से हुई बातचीत में उन्होंने कहा, "कार्रवाई तो उच्च-स्तरीय होनी चाहिए थी, अभी तो कार्रवाई की कोई दिशा ही नहीं है. इसलिए मैंने न्यायिक जाँच की माँग की है."
विधायक देवेंद्र सिंह लोधी हाल ही में संसदीय क्षेत्र के सभी विधायकों के एक दल को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर लौटे हैं.
उन्होंने कहा, "किसी भी निर्दोष को जेल नहीं भेजा जाएगा. सब अधिकारियों की लापरवाही से हुआ है, पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज करने से लेकर लोगों को समझाने और शांत कराने तक में, सभी चीज़ों पर देरी की. मैं पुलिस की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हूँ."
सरकारी महकमे का मनोबल
लेकिन बुलंदशहर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रभाकर चौधरी का कहना है, "कोई भी प्रेशर नहीं है पुलिस महकमे पर. अगर होगा भी तो उसे माना नहीं जाएगा क्योंकि मामला बहुत गम्भीर है."
उन्होंने कहा, "हमने गोकशी और भीड़ के द्वारा हुई हिंसा, दोनों मामलों पर निष्पक्षता से कार्रवाई की है. यहाँ तक कि, गोकशी के मामले में जिन चार लोगों का हाथ नहीं पाया गया उन्हें रिहा किया जा रहा है और तीन अन्य को हिरासत में लिया गया है".
बुलंदशहर के ज़िलाधिकारी अनुज झा भी किसी तरह की राजनीतिक दख़लंदाज़ी से इनकार करते हैं और बताते हैं, "घटना के तुरंत बाद का सबसे बड़ा चैलेंज था कि और दंगे न भड़कें, जिसे हमने बहुत प्रोफ़ेशनल तरीक़े से डील किया. उसके बाद के दिनों का चैलेंज था दोषियों को सज़ा हो और हम उसे भी उतने ही प्रोफ़ेशनल तरीक़े से निभा रहे हैं. किसी भी चीज़ में कोई कांप्रोमाइज़ नहीं होगा."
लेकिन साथ ही ज़िले के कुछ दूसरे वरिष्ठ अधिकारियों ने नाम न लिए जाने की शर्त पर बीबीसी से कहा कि, "इस तरह की घटना से सरकारी महकमे का मनोबल नीचे गिरना स्वाभाविक है."
एक वरिष्ठ अफ़सर के मुताबिक़, "ऐसे किसी भी मामले में कुछ ऐसे सरकारी कर्मी होते हैं जो मौक़े पर भेजे जाते हैं, स्थिति सम्भालने के लिए. अगर उन्हीं के मन में जान गँवाने या भीड़ का शिकार होने का भय बैठ जाएगा तो मनोबल ख़त्म हो ही जाएगा."
सरकार का मक़सद
उधर, उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता चंद्रमोहन इस बात से इनकार करते हैं कि प्रदेश में सत्तारूढ़ योगी सरकार का हिंसा के बाद की प्रशासनिक कार्रवाई पर कोई दबाव रहा है.
उन्होंने कहा, "ज़िला प्रशासन और उत्तर प्रदेश सरकार ने घटना को विकराल रूप धारण करने से रोकने के लिए पूरे प्रयास सफल तरीक़े से किए हैं".
ग़ौरतलब है कि प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और हिंसा के दो प्रमुख आरोपी योगेश राज और शिखर अग्रवाल का ताल्लुक बजरंग दल और भाजपा की युवा इकाई से रहा है.
क्या यही वजह है कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई धीमी बताई जा रही है या अभी तक वे गिरफ़्त से दूर हैं और अपने को निर्दोष बताने वाले वीडियो जारी कर रहे हैं? मैंने यही सवाल किया भाजपा प्रवक्ता चंद्रमोहन से.
उनका जवाब था, "ये आरोप ग़लत हैं, गिरफ़्तारियाँ लगातार हो रही हैं. साथ ही जिन अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठे थे उनका तबादला भी किया गया है. सरकार का उद्देश्य हर दोषी को सज़ा दिलाने का है."
'राजनीतिक साज़िश'
बुलंदशहर में हुई हिंसा ने दो हफ़्तों के भीतर ही पूरा राजनीतिक बवंडर मचा रखा है. विपक्षी पार्टियों ने सत्ताधारी भाजपा के रवैये की निंदा भी की है.
उत्तर प्रदेश के कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह का आरोप है कि, "योगी सरकार दोषियों के साथ खड़ी दिखती है".
उन्होंने कहा, "इतनी बड़ी घटना के तीन दिन बाद मुख्यमंत्री हाई लेवल बैठक करते हैं लेकिन जो दो जानें चली गयीं उसका ज़िक्र किए बग़ैर वे प्रशासन को सिर्फ़ गोकशी रोकने का आदेश देते है. ये सरकार की प्राथमिकता और गुनहगारों के साथ लिप्तता दिखाने के लिए काफ़ी नहीं क्या."
बुलंदशहर हिंसा के बाद मुख्यमंत्री के गोकशी रोकने वाले बयान की ख़ासी आलोचना हुई थी और कुछ विश्लेषकों ने कहा था कि, "इससे पुलिस का मनोबल भी गिरेगा."
लेकिन भाजपा प्रवक्ता चंद्रमोहन उस बयान को सही ठहराते हुए कहते हैं, "जो घटनाक्रम हुआ उसके मूल में गोकशी है और घटना पूरी तरह से एक राजनीतिक साज़िश है. जिस समय बुलंदशहर में एक समुदाय का बड़ा धार्मिक आयोजन हो रहा था उसी समय पर जिले में अलग-अलग स्थानों पर गोवंश के अवशेष पाया जाना एक बड़ी राजनीतिक साज़िश ही है."
मंदिर-मस्जिद की सियासत
भाजपा का इशारा इन दिनों ज़िले में हुए एक आयोजन की तरफ़ है.
दरअसल, लाखों मुसलमान 1-3 दिसंबर तक उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर (दरियापुर इलाक़े) में आयोजित 'इज्तेमा' में पहुँचे थे. इज्तेमा को 'मुसलमानों का सत्संग' कहा जा सकता है.
इन आयोजनों में मुस्लिम धर्म गुरु मुसलमानों से अपनी बुनियादी शिक्षाओं की ओर लौटने का आह्वान करते हैं. तीन दिन के इस कार्यक्रम में ज़्यादातर सुन्नी मुसलमान शिरकत करते हैं.
मुस्लिम धर्म गुरुओं के अनुसार, इज्तेमा को राजनीतिक मुद्दों से हमेशा दूर रखा जाता है. लेकिन अब इस पर राजनीति खुल कर हो रही है.
हिंसा को 'राजनीतिक साज़िश' बताने वाले भाजपा के दावों को समाजवादी पार्टी के बुलंदशहर ज़िलाध्यक्ष, हामिद अली, ने सिरे से ख़ारिज कर दिया.
उन्होंने कहा, "सरकार ने जल्दबाज़ी में आला अफ़सरों का तबादला क्यों किया? ज़ाहिर है, कोई छिपा मक़सद ही होगा, वरना उन अफ़सरों की जाँच को पूरी तो होने होते. लेकिन मंदिर-मस्जिद की सियासत और हिंदू-मुस्लिम को लड़ाने की सियासत अब चलने वाली नहीं है."
पार्ट 4
महाव वो गाँव है जहाँ गायों के कंकाल मिलने के बाद से बवाल बढ़ता चल गया था और ख़त्म हिंसा के बाद ही हुआ.
महाव से क़रीब बीस मिनट की दूरी पर है नयाबाँस गाँव जहाँ हम बुधवार दोपहर को पहुँचे.
इस गाँव में भी क़रीब एक-तिहाई घरों पर आज भी ताले लगे हैं और हम जिससे भी एक व्यक्ति का पता पूछने के लिए ठहरते हैं, वो पहले ही इशारा एक संकरी सी गली की ओर कर देता है. हमें तलाश है योगेश राज के घर की.
गली के भीतर घुसने के पहले ही एक बड़े से 'अखंड भारत' वाले नक़्शे पर नज़र पड़ी तो योगेश के एक पड़ोसी बोल बैठे, "वो बजरल दल का समर्पित कार्यकर्ता है और पूरे इलाक़े में कहीं भी गोकशी होती थी तो पहले ही पहुँच जाता था".
योगेश राज को हिंसा का मुख्य अभियुक्त बताया गया है और फ़िलहाल वो पुलिस की दर्जनों टीमों को चकमा देने में कामयाब रहे हैं. हिंसा के वीडियो में ग़ुस्साए योगेश को प्रशासन से घटना से पहले हुई गोकशी की घटना पर कार्रवाई करने की माँग करते देखा गया है
बुलंदशहर पुलिस का जवाब
लेकिन योगेश के दरवाज़े तक पहुँचने के पहले एक महिला ने मेरा रास्ता रोक कर पूछा, "क्या आप मेरे पति और बेटे को जेल से छुड़वा सकते हैं?". इनका नाम भूरी देवी है और ये योगेश कुमार की चाची हैं.
उन्होंने बताया, "जिस दिन हिंसा हुई, उस रात पौने बारह बजे पुलिस वाले आए और मेरे पति देवेंद्र और बेटे चमन कुमार को घर से मारते हुए ले गए. मेरी बेटी के हाथ में लाठी पड़ी और आज भी सूजन है. वे जेल में हैं, लेकिन मैं क़सम खा कर कहती हूँ कि वे हिंसा के समय मौक़े पर मौजूद नहीं थे. योगेश नहीं मिला तो हमारे लोगों को लपेट लिया गया है"
दरअसल, पुलिस ने जिन 28 लोगों के ख़िलाफ़ नामज़द रिपोर्ट दर्ज की है उनमें भूरी के पति और बेटे के नाम हैं. हालाँकि भूरी देवी का दावा है कि उनका बेटा पुलिस परीक्षा की तैयारी के सिलसिले में कोचिंग कर रहा था और घटनास्थल पर नहीं था.
जबकि बुलंदशहर पुलिस का जवाब है, "जितने भी लोगों के ख़िलाफ़ नामज़द रिपोर्ट है उन सभी की शिनाख़्त करवाई गई है और जिनकी नहीं हो सकी वे अज्ञात रिपोर्ट का हिस्सा हैं".
योगेश के आस-पड़ोस वाले कुछ भी बोलने से क़तरा रहे है और उसके माता-पिता घटना के दिन शाम को ही घर छोड़कर चले गए थे. घर के बाहर कुर्की का नोटिस चिपका मिला.
चलने से पहले मैंने भूरी देवी से पूछा, "योगेश की तलाश में पुलिस की पिछली दबिश कब हुई थी?". जवाब मिला, "चार दिन हो गए इस बात को".
पार्ट 5
इसी मंगलवार को कई बार मिलाने के बाद उठा अभिषेक सिंह का फ़ोन.
बोले, "ज़रा बैंक तक आया हूँ और काफ़ी काम है, अगर दो बजे के बाद बात करें तो अच्छा रहेगा".
दो बजे के बाद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के बेटे से हमारी लंबी बात हुई.
अभिषेक ने कहा, "सरकार अपने लोगों को बचा रही है, सिर्फ़. कुछ धार्मिक संगठनों का पूरा दबाव है योगी सरकार पर. हम लोग जाँच से अभी भी संतुष्ट नहीं हैं और कई सवाल हैं मन में."
स्याना थाने के इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह उस गुस्साई भीड़ का निशाना बन गए थे जो कथित गोकशी का विरोध करते हुए हिंसक और बेक़ाबू हो गई थी.
उनकी हत्या के कुछ दिन बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके परिवार से मुलाक़ात की थी और मुआवज़े के अलावा परिवारजन को सरकारी नौकरी देने की घोषणा भी कर दी थी.
लेकिन इंस्पेक्टर सुबोध के परिवार को लगता है "उन्हें इंसाफ़ नहीं मिल रहा".
अभिषेक सिंह ने कहा, "सरकार एक तरफ़ मुआवज़ा देती है और दूसरी ओर घटना की जाँच के बजाय गोकशी पर ही बात करती रहती है. लेकिन सच्चाई यही है कि पुलिसवालों पर बहुत दबाव है इस मामले को ठंडा कर देने का. मेरे पिताजी भी राजनीति का शिकार हुए हैं, बस".
उधर इसी घटना में सुमित नाम के जिस युवक की मौत हुई है उसे वीडियो फ़ुटेज में दंगाइयों के साथ साफ़ देखा जा सकता है. जिनके साथ उसे देखा गया है उनके नाम एफ़आईआर दर्ज हुई है और कई गिरफ़्तार भी किए गए हैं.
सुमित के परिवार की भी माँग मुआवज़े और सरकारी नौकरी के साथ शहीद के दर्जे मिलने की रही है.
फिर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सुमित के पिता को अपने दफ़्तर बुलाना और मुलाक़ात करने से कोई ग़लत संदेश नहीं जाता क्या? मैंने इस सवाल को भाजपा प्रवक्ता चंद्रमोहन के सामने रखा.
उनका जवाब था, "हमारी सहानुभूति उस परिवार के साथ भी है जिसके नौजवान की मौत हुई है. साथ ही बुलंदशहर में शांति बनाए रखना हमारी प्राथमिकता है."
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