ट्रैफ़िक जाम की समस्या से निजात दिलाने वाली तकनीक || Ai Solved traffic jam ki samasya in hindi essay By AryaTechLoud

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Post Write By-UpendraArya
हम सब कभी न कभी ट्रैफ़िक जाम में फंसे हैं. जाम में अटक जाएं तो लगता है कि ट्रैफ़िक की लाइट बदल ही नहीं रही है. कई कई बार मीलों लंबी लाइन लग जाती है. धीमा चलता ट्रैफ़िक दम घोंटता सा मालूम होता है.
मज़े की बात है कि रेंगता हुआ ट्रैफ़िक आज की बेइंतिहा तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी का अटूट हिस्सा बन गया है.
सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ दिनों-दिन बढ़ती जा रही है. ट्रैफ़िक जाम दूर करने वाले सिस्टम इस भीड़ से निपटने में नाकाम साबित हो रहे हैं. कभी बारिश, कभी कोहरा और कभी बिना वजह ही लगे जाम में लोग घंटों फंसे रहते हैं.


एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ 2015 में दुनिया भर में 1.3 अरब गाड़ियां थीं. विकासशील देशों में गाड़ियों की बिक्री के हिसाब से माना जा रहा है कि 2040 तक दुनिया भर में क़रीब 2 अरब गाड़ियां सड़कों पर होंगी.
नई सड़कें, बाईपास और फ्लाईओवर बनने के बावजूद, इन गाड़ियों को तेज़ रफ़्तार से चलाने के लिए पर्याप्त जगह नहीं होगी. यानी आने वाले दौर में ट्रैफ़िक जाम की समस्या और बढ़ेगी.
इन जाम से निपटने के लिए लोग अक़्लमंद मशीनों की तरफ़ बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं. उन्हें लगता है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से हम ट्रैफिक जाम से राहत पा सकते हैं.

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बेंगलुरु का मॉनिटरिंग सिस्टम

कुछ लोग ख़ुद से चलने वाली गाड़ियों को हर मर्ज़ की दवा मानते हैं. क्योंकि रोबोट से चलने वाली ये गाड़ियां ट्रैफ़िक के नियम नहीं तोड़ेंगी. लेन में चलेंगी और मुश्किल वक़्त में ज़्यादा तेज़ी से फ़ैसले ले सकेंगी. लेकिन, अभी सड़कों पर सेल्फ ड्राइविंग कारों का असर दिखने में कम से कम दो दशक लगेंगे.
पर, अगले दो दशकों में योजना बनाने वालों को दिनों-दिन बढ़ती गाड़ियों की भीड़ से निपटना होगा. ऐसा सिस्टम विकसित करना होगा, जो जाम लगने पर फ़ौरन इससे निजात दिलाने में जुट जाए.
बेंगलुरु में व्यस्त समय के दौरान ट्रैफ़िक की रफ़्तार औसतन 4 किलोमीटर प्रति घंटे होती है. यानी ये कछुए की तरह रेंगता है.
इस जाम से निपटने के लिए सीमेंस कंपनी ने एक मॉनिटरिंग सिस्टम विकसित किया है. ये सिस्टम ट्रैफिक कैमरों की मदद से जाम पर निगाह रखता है. किसी भी सड़क पर गाड़ियों की तादाद के हिसाब से आगे चल कर लगने वाले जाम का पहले से अंदाज़ा लगा लेता है. इसके बाद ट्रैफिक लाइटें इस तरह जलाई-बुझाई जाती हैं कि जाम न लगे.
हमारे ट्रैफिक सिस्टम को इस तरह काम करने के लिए ढेर सारे आंकड़े चाहिए. आज सीसीटीवी कैमरों से लेकर कारों में लगे नेविगेशन सिस्टम तक, ऐसे ढेर सारे आंकड़े मुहैया करा रहे हैं. बहुत से कैमरे तो सड़कों पर ही लगाए गए हैं, ताकि गाड़ियों की तादाद का अंदाज़ा लगाया जा सके.


ट्रैफिक लाइट पर कैमरे तो 1960 के दशक में ही लगाए जाने लगे थे.

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आर्टिफ़िशियल इंटलिजेंस की मदद
अमरीका की मिशिगन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर गैबोर ओरोस्ज़ कहते हैं, "न्यूटन के समय से ही इंसान गणित के मॉडल की मदद से अपनी मुश्किलों का हल तलाशने लगा था. अगर हमारे पास आंकड़े हैं, तो हम बहुत सी चुनौतियों से पार पा सकते हैं. ये बात ट्रैफ़िक जाम पर भी लागू होती है.'


इसीलिए आज आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की मदद से ट्रैफ़िक जाम को कम करने की कोशिशें हो रही हैं. लंदन के मशहूर एलन तुरिग इंस्टीट्यूट और टोयोटा मोबिलिटी फाउंडेशन ने मिलकर हाल ही में नया प्रोजेक्ट शुरू किया है. इसका मक़सद ट्रैफ़िक मैनेजमेंट सिस्टम को इतना बेहतर बनाना है कि वो जाम लगने सी पहले ही भविष्यवाणी कर सके और इससे निपटने के निर्देश ख़ुद ही दे.
टोयोटा फ़ाउंडेशन के रिसर्च प्रमुख विलियम शर्निकॉफ़ कहते हैं कि, 'अक़्लमंद मशीनें हमारी भविष्यवाणी करने की क्षमता को काफ़ी बढ़ा सकती हैं. शहरों के मैनेजर इनकी मदद से तेज़ी से फ़ैसले ले सकते हैं. सिग्नल और गाड़ियों के रूट में बदलाव कर के ट्रैफ़िक जाम से लोगों को बचा सकते हैं.'
अमरीका के पिट्सबर्ग शहर में ऐसा ट्रैफ़िक मैनेजमेंट सिस्टम 2012 से ही आज़माया जा रहा है. कार्नेगी मेलॉन यूनिवर्सिटी के डेवेलप किए गए सिस्टम सरट्रैक की मदद से ट्रैफिक की निगरानी की जाती है. ज़रूरत पड़ने पर रूट डायवर्ज़न या ट्रैफिक सिग्नल में बदलाव कर के जाम लगने से रोका जाता है. दावा किया जा रहा है कि इससे पिट्सबर्ग में ट्रैफिक जाम में 40 प्रतिशत की कमी आई है. गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण भी 25 फ़ीसद तक कम हुआ है.
इस सिस्टम को काम करने के लिए वीडियो फीड चाहिए होती है. ये सड़कों की लाइव तस्वीरें होती हैं, जो सरट्रैक को ये अंदाज़ा लगाने में मदद करती हैं कि कहां जाम लग सकता है. फिर उसी हिसाब से दिशा-निर्देश जारी किए जाते हैं और ट्रैफिक डायवर्ज़न किया जाता है.
अब कमोबेश हर शख़्स मोबाइल अपने साथ रखता है. आगे चलकर सभी नेविगेशन सिस्टम से जुड़ेंगे. इनसे मिलने वाले आंकड़े भी ट्रैफिक जाम से बचने में मदद करेंगे.



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चुनौतियां

सीमेंस मोबिलिटी कंपनी अपने कंप्यूटर नेटवर्क की मदद से कई शहरों में ट्रैफिक जाम से निजात दिलाने का काम कर रही है. इसके इंटेलिजेंट ट्रैफ़िक सिस्टम के प्रमुख मार्कस श्लिट कहते हैं कि, 'दुनिया में कई जगह हमारे सिस्टम काम कर रहे हैं और इनमें रात-दिन बेहतरी की कोशिशें जारी हैं. आगे चलकर ट्रैफ़िक सिस्टम इतना पेचीदा होने वाला है कि बिना एआई के हम इनका मैनेजमेंट ही नहीं कर पाएंगे. आंकड़ों की मदद से हम ट्रैफिक जाम में पैटर्न तलाशकर उनका हल भी निकाल सकेंगे.'


जैसे कि जर्मनी के हैजेन शहर में आर्टिफ़िशियल इंटलिजेंस की मदद से ट्रैफिक लाइट कंट्रोल की जाती है. इससे चौराहों पर गाड़ियों को ग्रीन लाइट का इंतज़ार करने में कम वक़्त गंवाना पड़ता है.
वैसे आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल केवल गाड़ियों में नही होता. पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में इलेक्ट्रिक बाइक्स के लिए भी इनका प्रयोग हो रहा है. शहर में लगे जाम की असल तस्वीरों की मदद से यहां का सिस्टम ये बता देता है कि किस जगह इलेक्ट्रिक बाइक्स की मांग बढ़ने वाली है. कहां पर चार्जिंग सिस्टम की ज़्यादा ज़रूरत होगी. इससे इलेक्ट्रिक बाइक मुहैया कराने वाली कंपनी की काफ़ी मदद हो जाती है. लोगों को भी ज़रूरत के हिसाब से बाइक तुरंत मिल जाती हैं.
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लेकिन, कई बार मशीनें भी सही तस्वीर नहीं बता पातीं. उनके लिए फ़ैसले इंसानों को मंज़ूर नहीं होते. अब अगर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेस बार-बार रूट डायवर्ज़न करेगा, तो जाम में फंसा शख़्स तो खीझेगा कि आख़िर उसका रास्ता बार-बार क्यों बदला जा रहा है.
लेकिन, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के फ़ायदे ज़्यादा हैं. ट्रैफिक कंट्रोल करने के अलावा तमाम रिहाइशी इलाक़ों में गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण को रोकने और पार्किंग के लिए सही जगह बताने तक के लिए इनका इस्तेमाल हो रहा है.


जानकार कहते हैं कि मशीनों का काम इंसानों को रोज़मर्रा के रूटीन काम से निजात दिलाना है, ताकि वो ज़िंदगी में और बेहतर कामों के लिए वक़्त निकाल सकें.
जैसे कि मिल्टन केन्स में सिक्योरिटी कैमरों की मदद से ट्रैफिक जाम नियंत्रित किया जा रहा है. इससे लोगों का काफ़ी समय बच जाता है. यहां का सिस्टम ट्रैफिक जाम को लेकर 80 प्रतिशत भविष्यवाणी सही करता है.
तो, ट्रैफिक मैनेजमेंट में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल हमारी ज़िंदगी को थोड़ी रफ़्तार, थोड़ा सुकून देगा.
मार्कस श्लिट कहते हैं कि ये तो बस शुरुआत है.



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