Post Write By-UpendraArya
मनमोहन सिंह की ज़िंदगी पर बनी फ़िल्म 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' का ट्रेलर रिलीज़ होते ही ट्विटर पर टॉप ट्रेंड में छाया हुआ है.
फ़िल्म में अनुपम खेर मुख्य भूमिका में हैं. ये फ़िल्म संजय बारू की किताब पर आधारित है. फ़िल्म में संजय बारू का किरदार अक्षय खन्ना निभा रहे हैं.
ये फ़िल्म 11 जनवरी को सिनेमाघरों में रिलीज़ होगी.
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आइए पहले आपको ट्रेलर में नज़र आने वाले किरदारों के कहे कुछ डायलॉग पढ़वाते हैं...
- मुझे तो डॉक्टर साहेब भीष्म जैसे लगते हैं. जिनमें कोई बुराई नहीं है. पर फ़ैमिली ड्रामा के विक्टिम हो गए.
- महाभारत में दो परिवार थे. इंडिया में तो एक ही है.
- 100 करोड़ की आबादी वाले देश को कुछ गिने-चुने लोग चलाते हैं. ये देश की कहानी लिखते हैं.
- न्यूक्लियर डील की लड़ाई हमारे लिए पानीपत की लड़ाई से भी बड़ी थी.
- पूरे दिल्ली के दरबार में एक ही तो ख़बर थी कि डॉक्टर साहेब को कब कुर्सी से हटाएंगे और कब पार्टी राहुल जी का अभिषेक करेगी.
- मुझे कोई क्रेडिट नहीं चाहिए. मुझे अपने काम से मतलब है. क्योंकि मेरे लिए देश पहले आता है.
- 'मैं इस्तीफ़ा देना चाहता हूं.' एक के बाद एक करप्शन स्कैंडल. इस माहौल में राहुल कैसे टेकओवर कर सकता है.
कौन थे संजय बारू?
संजय बारू साल 2004 से 2008 के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे.2014 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दफ्तर ने इस किताब की आलोचना की थी.'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टरः द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ़ मनमोहन सिंह' में संजय बारू ने दावा किया था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री सिंह ने उनसे कहा, "किसी सरकार में सत्ता के दो केंद्र नहीं हो सकते. इससे गड़बड़ी फैलती है. मुझे मानना पड़ेगा कि पार्टी अध्यक्ष सत्ता का केंद्र हैं. सरकार पार्टी के प्रति जवाबदेह है."तब के प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक वक्तव्य जारी कर इसे अपने पद का दुरुपयोग करके आर्थिक फायदा उठाने वाला कदम बताया था.किताब में बारू ने और कौन-कौन से दावे किए थे?- 2009 की ज़बरदस्त जीत के बाद भी मनमोहन सिंह की रीढ़विहीनता समझ के परे थी. अगर वो अपने ही दफ़्तर में अपनी पसंद के अधिकारियों की नियुक्ति करवा पाने में अक्षम थे तो इसका मतलब ये था कि उन्होंने बहुत जल्दी ही 'दूसरों' को जगह दे दी थी.
- सोनिया गांधी की राष्ट्रीय सलाहकार परिषद सुपर कैबिनेट की तरह काम करती थी और सभी सामाजिक सुधारों के कार्यक्रमों की पहल करने का श्रेय उसे ही दिया जाता था.
- मनमोहन सिंह की अवहेलना करने का ये आलम था कि अमरीका जैसे देश की यात्रा कर वापस आने के बाद विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इस बात की ज़रूरत भी नहीं समझी थी कि वो इस बारे में मनमोहन सिंह को ब्रीफ़ करें.
- सोनिया गांधी का जून 2004 मे सत्ता त्याग देना अंतरआत्मा की आवाज़ सुनने का नतीजा नहीं था बल्कि एक राजनीतिक क़दम था.
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अंकित कुमार लिखते हैं, ''मुझे लगता है कि ये अगले साल प्रधानमंत्री के लिए होने वाले चुनावों को प्रभावित करेगा. इस फ़िल्म पर काफी राजनीतिक ड्रामा होगा.''कृष्णा ट्रेलर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, ''मुझे लगा था कि 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' एक साइलेंट फ़िल्म होगी.''
भावना अरोड़ा लिखती हैं, ''मनमोहन सिंह एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर थे. इस एक्सीडेंट के बाद उनकी आवाज़ चली गई थी.''यू-ट्यूब पर अंकित प्रभाकर ने लिखा- "इस फ़िल्म में कांग्रेस को विलेन बनाकर पेश किया जा रहा है. अब कांग्रेस 2019 हारेगी, अबकी बार फिर मोदी सरकार."ट्रेलर के स्क्रीनग्रैब से कुछ लोग मीम बनाकर भी शेयर कर रहे हैं.
कार्तिक दयामंद इस ट्रेलर पर कहते हैं, ''क्या ये अगले चरण की फ़ेक न्यूज़ है?''संजू शर्मा लिखते हैं, ''इस ट्रेलर के ज़रिए कांग्रेस की हालत खराब करने की कोशिश हो रही है.''
इकराम पटेल ने लिखा, ''ये फ़िल्म चुनाव के वक़्त पर आ रही है. लेकिन मतदाताओं पर इससे कोई असर नहीं पड़ेगा.''सुजान सवाल करते हैं, ''फ़िल्म रिलीज़ का वक़्त काफी सही चुना. अबकी बार....?''अनुपम खेर की आवाज़ की तारीफ़ करते हुए वेंकटेश ने लिखा, ''कमाल की आवाज़. क्या डॉ मनमोहन सिंह ने डबिंग की है.''वैभव सिंह ने लिखा, ''साम-दाम-दंड-भेद. इन चुनावों में हर चीज़ आज़माई जाएगी.''प्रथित सेन लिखते हैं, ''माफ़ कीजिए लेकिन डॉ मनमोहन सिंह को जिस तरह दिखाया गया है वो ग़लत है.''