भारत में हाथियों की कुल संख्या 20 हजार से 25 हजार के बीच है। भारतीय हाथी को विलुप्तप्राय जाति के तौर पर वर्गीकृत किया गया है। एक ऐसा जानवर जो किसी जमाने में राजाओं की शान होता था आज अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। धरती का एक बुद्धिमान, समझदार, दिमागदार, शाकाहारी जीव हमारा क्या बिगाड़ रहा है, जो हम उसके साथ ऐसा सलूक कर रहे हैं?
हम क्या बन गए हैं? ईश्वर ने हमें एक बेहतर दुनिया बनाने और सोचने की शक्ति दी। लेकिन क्या हम वाकई इंसान हैं? यदि किसी जीव को हम बचा नहीं सकते तो मारने का अधिकार किसने दिया। दक्षिण भारत के केरल जैसे शिक्षित राज्य में एक गर्भवती हथिनी मल्लपुरम की सड़कों पर खाने की तलाश में निकली। कुछ गांव वालों ने उसे अनानास दिया और उस गर्भवती हथिनी ने इंसानों पर भरोसा करके खा लिया। लेकिन वह जानती नहीं थी कि उसे पटाखों से भरा अनानास खिलाया जा रहा है। पटाखे उसके मुंह में फट गये और उसका मुंह और जीभ बुरी तरह चोटिल हो गईं।
दरअसल, यह खूबसूरत जीव बाद में एक सुंदर बच्चे को जन्म देने वाली थी। गर्भ के दौरान भूख अधिक लग रही थी। उसे अपने बच्चे का भी खयाल रखना था। मुंह में हुए जख्मों की वजह से वह कुछ खा नहीं पा रही थी। घायल हथिनी भूख और दर्द से तड़पती हुई सड़कों पर भटकती रही। घायल होने के बावजूद, उसने किसी भी घर को नुकसान नहीं पहुंचाया और न ही किसी एक इंसान को चोट पहुंचाई, जबकि वह नदी की ओर बढ़ गई और भारी दर्द से कुछ आराम पाने के लिए वहां खड़ी रही और उसने एक भी इंसान को घायल किए बिना नफरत की दुनिया छोड़ दी।
पढ़े-लिखे मनुष्यों की सारी मानवीयता क्या सिर्फ मनुष्य के लिए ही हैं? खैर पूरी तरह तो मनुष्यों के लिए भी नहीं है। हमारी प्रजाति में तो गर्भवती स्त्री को भी मार देना कोई नई बात नहीं है। इन पढ़े-लिखे लोगों से बेहतर तो वे आदिवासी हैं जो जंगलों को बचाने के लिए अपनी जान लगा देते हैं। जंगलों से प्रेम करना जानते हैं। जानवरों से प्रेम करना जानते हैं।
वह खबर ज्यादा पुरानी नहीं हुई है जब अमेजन के जंगल जले। इन जंगलों में न जाने कितने जीवों ने दम तोड़ा होगा।
ऑस्ट्रेलिया में हजारों ऊंट मार दिए गए, यह कहकर कि वे ज्यादा पानी पीते हैं। कितने ही जानवर मनुष्य के स्वार्थ की भेंट चढ़ते हैं।
कोरोना ने हम इंसानों का कच्चा-चिट्ठा खोलकर रख दिया है। यह बता दिया है कि हमने प्रकृति के दोहन में सारी सीमा लांघ दी है। लेकिन अब भी हमें अकल नहीं आई। हमारी क्रूरता नहीं गई। मनुष्य इस धरती का सबसे क्रूर और स्वार्थी प्राणी है।
Post Write By-UpendraAryaबता दिया है कि हमने प्रकृति के दोहन में सारी सीमा लांघ दी है। लेकिन अब भी हमें अकल नहीं आई। हमारी क्रूरता नहीं गई। मनुष्य इस धरती का सबसे क्रूर और स्वार्थी प्राणी है।
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