चमगादड़ में इतना वायरस क्यों होता है
तो अगर आप ने ये सुना है तो आप जन लो की कोरोना में वायरस होता है ठीक है इसका मतलब ये नही की वो इन्सान में उसे फैलाते है ! और रही बात चमगादड़ में वायरस होने की बात तो आप को बताना जरूरी है है की चमगादड़ एक ऐसा जिव है जिसका इम्यून सिस्टम सबसे ज्यादा स्त्रोंगे होता है और जब भी कोई वायरस इसके अन्दर आता है तो इंहे कुछ क्र नहीं पता है जिसकी वजह से वायरस को इगो कह लो गुस्सा ख लो वो हो जाता है जिसकी वजह से वो इनके अन्दर इतना ज्यादा ग्रो करते है की वो सब इनके अनादर बहुत ही डेडली रूप ले लेता है
और अगर किसी थर्ड पार्टी की मदद से किसी के अन्दर जाता है तो उसकी इम्यून सिस्टम सही न होने की वजह से उसे बहुत नुकसान पहुचता है !
चमगादड़ कैसे हमरे लिए एक वरदान है
चमगादड़ों की संख्या तेजी से घट रही है। यह किसानों के लिए ही नहीं बल्कि आम लोगों के लिए भी चिंतनीय विषय है। विशेषज्ञ मानते हैं की दुनिया में चमगादड़ की 11100 प्रजाति है। झारखंड में चमगादड़ओं की करीब 24 प्रजातियां हैं। वैश्विक स्तर पर देखें, तो प्राकृतिक और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करने वाली एजेंसी आईयूसीएन चमगादड़ को विलुप्त प्राय श्रेणी में रखा है। झारखंड के पर्यावरणविद् डा प्रसेनजीत मुखर्जी ने बताया कि चमगादड़ों के घटने के कई कारण हैं। इसमें उनके प्राकृतिक आवास का ह्रास होना, जलवायु परिवर्तन, बीमारी, जंगलों का बेतहाशा कटना और इसके अवैध रूप से मांस का व्यापार करना है। अब जगह- जगह विंडमिल यानी पवन चक्की का लगना भी है। यह मिथक धारणा है कि चमगादड़ के मांस से मेडिसिन बनते हैं। डा मुखर्जी बताते हैं कि विश्व स्तर पर 2006 से अब तक 6.7 मिलियन चमगादड़ मर चुके हैं। इसका प्रमुख कारण चमगादड़ओं के कवक यानी फंजाइन के संक्रमण से होने वाली डब्ल्यूएनएस नामक बीमारी है, जो चमगादड़ के नाक और डायना को संक्रमित करता है। इससे उसकी मौत हो जाती है। व्हाइट नाज सिंड्रोम- डब्ल्यूएनएस बीमारी से मौत बहुत बड़ी संख्या में हो रही है। चमगादड़ कीटों के नियंत्रण में भी काफी लाभदायक है। एक घंटे में ही चमगादड़ करीब एक हजार मच्छरों के अलावा अन्य कीड़ों को खा जाते हैं। कीटों की वजहों से किसानों के फसल का विकास सही ढंग से हो पाता है। चमगादड़ के घटने से कीडों की संख्या में बड़ा इजाफा हो रहा है। कीड़ों की संख्या में बढ़ोतरी होती है, तो किसानों को सालाना करोड़ों रुपए का नुकसान उठाना पड़ेगा। चमगादड़ का न होना फसल पारितंत्र पर भी प्रतिकूल प्रभाव ड़लेगा। चमगादड़ के पारागन से ही फसल का पारितंत्र फैलता है।
फसल पारितंत्र में चमगादड़ काफी सहायक
यही नहीं घरों से चमगादड़ को भगाने के लिए जहर देकर मारा जा रहा है। चमगादड़ का होना इसलिए भी जरूरी है पारागन और फल के बीजों का प्रकीर्णन (डिस्पोजल) में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। फसल के पारितंत्र में भी चमगादड़ काफी उपयोगी है। चमगादड़ की कुछ प्रजातियां झारखंड में भी हैं, जो बिना भोजन पानी के ही अपने को छह माह तक संरक्षित रख सकते हैं। शहरों में चमगादड़ की अधिक संख्या होने से उसका मल काफी दुर्गंध देशा है। इससे जहां पेड़ होता है, वहां आसपास दुर्गंध से लोगों का रहना मुश्किल होता है, गांव देहातों में चमगादड़ निश्चित रूप से आज भी हमारे प्रकृति को संतुलन बनाने में अहम भूमिका निभा रही है।
जाल में चमगादड़ों को फंसाकर किया जाता है शिकार
झारखंड के पाकुड़ जिला अंतर्गत हिरणपुर गेस्ट हाउस जो वन विभाग का है। वहां बड़े-बड़े आठ-10 पेड़ों में आज भी हजारों की संख्या में चमगादड़ की कई प्रजातियां देखी जा सकती है। लोहरदगा, गुमला, रांची, लातेहार आदि इलाकों में चमगादड़ओं की संख्या काफी अधिक थी। बड़े-बड़े पेड़ में जाल लगाकर चमगादड़ओं को पकड़ते हैं। यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है।
चमगादड़ों का प्राकृतिक आवास सुरक्षित रखना जरूरी
चमगादड़ को बचाने उसे संरक्षित करने के लिए हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारी निभानी पड़ेगी। चमगादड़ को मारना वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत अपराध है। इस नियम का कठोरता से पालन करना चाहिए। तभी चमगादड़ को बचा पाएंगे। उन्हें बिना बाधा पहुंचाए उनके प्राकृतिक आवासों का विकास करना होगा। झारखंड में जिस तरह गिद्ध को बचाने के लिए ओरमांझी के जंगल में प्रजनन केंद्र बनाया गया है। उसी तरह चमगादड़ को बचाने के लिए सरकार को पहल करनी पड़ेगी।
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