COVID-19 - AKTU के स्प्लिटर एडॉप्टर से वेंटीलेटर की कमी दूर होने की उम्मीद

AKTU के CAS (सेंटर फ़ॉर एडवांस स्टडीज) के डॉ. अनुज कुमार शर्मा ने बताया कि वेंटीलेटर स्प्लिटर एडॉप्टर (Ventilator Splitter Adapter) की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इससे एक वेंटीलेटर से चार लोगों को ऑक्सीजन पहुंचाई जा सकती है.
कोरोना वायरस (COVID-19) के बढ़ते संक्रमण और ऐसे में स्वास्थ्य उपकरणों की कमी से जूझ रहे प्रदेश लिए अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी (Abdul Kalam Technical University) व  एसजीपीजीआई (SGPGI) के संयुक्त प्रयास से उम्मीद जगी है. दरअसल AKTU ने एक वेंटीलेटर स्प्लिटर एडॉप्टर (Ventilator Splitter Adapter) और फेस शील्ड (Face Shield) का सैंपल तैयार किया है. अगर ये क्लीनिकल टेस्टिंग में खरा उतरता है तो इसकी मदद से वेंटिलेटर की कमी को काफी हद तक दूर किया जा सकेगा. इसे एकेटीयू (AKTU) के सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज ने तैयार किया है. लैब अप्रूवल के बाद इनकी क्लीनिकल टेस्टिंग होगी. टेस्टिंग सही होने पर एकेटीयू इसका उत्पादन करेगा


वेंटिलेटर की कमी दूर करेगा ये एडॉप्टर


AKTU के कुलपति प्रो. विनय पाठक ने बताया कि एसजीपीजीआई (SGPGI) की मांग के अनुसार थ्रीडी प्रिंटिंग लैब में एडॉप्टर और फेस शील्ड बनाए गए हैं. वेंटिलेटर स्प्लिटर एडॉप्टर का इस्तेमाल कर एक वेंटिलेटर से 4 मरीजों को सुविधा दी जा सकेगी. उन्होंने बताया कि वेन्टिलेटर्स की कमी न हो इसलिए ऐसे एडॉप्टर का इस्तेमाल करने की कोशिश की जा रही है. मौजूदा समय में देश भर में वेंटिलेटर्स की कमी है, इनकी आपूर्ति बड़ी चुनौती है. एकेटीयू ने इस कमी को दूर करने में छोटी सी भूमिका निभाई है. एसजीपीजीआई जल्द ही इसकी टेस्टिंग करेगा. टेस्टिंग के बाद कोई कमी मिलती है तो उसे दुरुस्त किया जाएगा.
बायोडिग्रेडेबल है ये एडॉप्टर
फेस शील्ड के बारे में बताते हुए SGPGI के डॉ. आशीष कनौजिया ने कहा कि फेस शील्ड का इस्तेमाल पहले भी होता आया है. इसे बाहर से मंगाया जाता था. मौजूदा समय में अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर खुद बनवाया जा रहा है. वहीं AKTU के CAS (सेंटर फ़ॉर एडवांस स्टडीज) के डॉ. अनुज कुमार शर्मा ने बताया कि वेंटीलेटर स्प्लिटर एडॉप्टर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इससे एक वेंटीलेटर से चार लोगों को ऑक्सीजन पहुंचाई जा सकती है. अभी ज्यादातर जगहों पर एक वेंटीलेटर से दो लोगों तक ऑक्सीजन पहुंचाई जा रही है. साथ ही इसमें रेगुलेशन फ्लो का भी ऑप्शन रहेगा. यानि पेशेंट की जरूरत के हिसाब से ऑक्सीजन का फ्लो घटाया-बढ़ाया जा सकता है. उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि इसे पॉलीलेक्टिक एसिड (पीएलए) मटीरियल से बनाया है, जो प्लास्टिक नहीं है. यह बायोडिग्रेडेबल है जो इस्तेमाल न करने पर खुद ब खुद डिग्रेड हो जाएगा. इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होगा. उन्होंने बताया कि इसको डिजाइन एसजीपीजीआई के डॉ. आशीष कनौजिया ने केजीएमयू की डॉ. दिव्या और डॉ. सुमित की मदद किया था. इसे विकसित करने में मैक्ट्रॉनिक्स एमटेक के तीन छात्र अविनाश भाष्कर, दीपक चंद्रा जोशी और नितिन सिंह ने भी सहयोग दिया.

Post Write By-UpendraArya यह post पढ़कर आपको कैसा लगा प्लीज हमें कमेंट के मध्यम से बता दे और कोई सुझाव देना है तो हमें वो भी कमेंट में बता दे और एक बात हमसे जुड़े रहने के लिए हमारे youtube चैनल AryaTechLoud पे सब्सक्राइब करे और कोई बात करनी है तो कांटेक्ट करे हमसे फेस बुक पे Upendra Arya और फेसबुक page AryaTechLoud धन्यवाद आपका दिन शुभ हो

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने

संपर्क फ़ॉर्म