भारत इस साल 15 अगस्त को अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाएगा। 15 अगस्त भारतीयों के जेहन में बसा एक ऐसी तारीख है जिसकी तुलना 26 जनवरी छोड़कर शायद ही किसी और दिन से की जा सके। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत को आजादी मिलने के लिए किसी और तारीख पर सहमति बनी थी लेकिन अंग्रेजों ने अपनी चाल को सफल बनाने के लिए इसे बदलवा दिया।
असल में साल 1930 से ही कांग्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए 26 जनवरी के दिन का चयन कर चुकी थी। हालांकि इंडिया इंडिपेंडेंस बिल के मुताबिक ब्रिटिश प्रशासन ने सत्ता हस्तांतरण के लिए 3 जून 1948 की तारीख तय की गई थी। फरवरी 1947 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट रिचर्ड एटली ने घोषणा की थी कि सरकार 3 जून 1948 से भारत को पूर्ण आत्म प्रशासन का अधिकार प्रदान कर देगी। हालांकि माउंटबेटन के परिदृश्य में आने के बाद सब कुछ बदल गया। फरवरी 1947 में ही लुई माउंटबेटन को भारत का आखिरी वायसराय नियुक्त किया गया था। माउंटबेटन पहले पड़ोसी देश बर्मा के गवर्नर हुआ करते थे। उन्हें ही व्यवस्थित तरीके से भारत को सत्ता हस्तांतरित करने की जिम्मेदारी भी दी गई थी।
माउंटबेटन ने क्या किया
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि माउंटबेटन ब्रिटेन के लिए 15 अगस्त की तारीख को शुभ मानता था। क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त जब 15 अगस्त 1945 को जापानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था, तब माउंटबेटन अलाइड फोर्सेज का कमांडर हुआ करता था। इसलिए माउंटबेटन ने ब्रिटिश प्रशासन से बात करके भारत को सत्ता हस्तांतरित करने की तिथि 3 जून 1948 से 15 अगस्त 1947 कर दी।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि माउंटबेटन ब्रिटेन के लिए 15 अगस्त की तारीख को शुभ मानता था। क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त जब 15 अगस्त 1945 को जापानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था, तब माउंटबेटन अलाइड फोर्सेज का कमांडर हुआ करता था। इसलिए माउंटबेटन ने ब्रिटिश प्रशासन से बात करके भारत को सत्ता हस्तांतरित करने की तिथि 3 जून 1948 से 15 अगस्त 1947 कर दी।
हालांकि एक दूसरे इतिहासकार धड़े का तर्क ज्यादा पुष्ट मालूम पड़ता है। भारत को 3 जून 1948 के बजाय 15 अगस्त 1947 को ही सत्ता हस्तांतरित करने को लेकर एक और कारण यह भी बताया जाता है कि ब्रिटिशों को इस बात की भनक लग गयी थी कि मोहम्मद अली जिन्ना जिनको कैंसर था और वो ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहेंगे। इसी को ध्यान में रखते हुए अंग्रेजों को चिंता थी कि अगर जिन्ना नहीं रहे तो महात्मा गांधी अलग देश न बनाने के प्रस्ताव पर मुसलमानों को मना लेंगे।
जिन्ना के मरने के डर से हुआ सब!
असल में जिन्ना ही वह चेहरा थे जिनको आगे रखकर ब्रिटिशों ने भारत को दो टुकड़ों में बांटने की साजिश रची थी और देश में ब्रिटिशों ने ऐसा हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण किया जिसकी आग सदियों तक नहीं मिटने वाली थी। अगर जिन्ना की मृत्यु ब्रिटिशों के प्लान के पूरा होने से पहले हो जाती तो उन्हें मुश्किल आ सकती थी। बता दें कि 15 अगस्त ब्रिटिशों के लिए शुभ दिन था क्योंकि इसी दिन ब्रिटेन और मित्र राष्ट्रों ने जापान को आत्म समर्पण करवाकर द्वतीय विश्वयुद्ध जीता था इसलिए इसे दिन भारत को भी सत्ता हस्तांतरित करने का निर्णय लिया गया। अंततः 15 अगस्त 1947 को ब्रिटेन ने भारत को सत्ता हस्तांतरित कर दिया और जैसा कि अंग्रेजों को अंदेशा था यह सब हो जाने के कुछ ही महीने बाद जिन्ना की मृत्यु हो गई।
असल में जिन्ना ही वह चेहरा थे जिनको आगे रखकर ब्रिटिशों ने भारत को दो टुकड़ों में बांटने की साजिश रची थी और देश में ब्रिटिशों ने ऐसा हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण किया जिसकी आग सदियों तक नहीं मिटने वाली थी। अगर जिन्ना की मृत्यु ब्रिटिशों के प्लान के पूरा होने से पहले हो जाती तो उन्हें मुश्किल आ सकती थी। बता दें कि 15 अगस्त ब्रिटिशों के लिए शुभ दिन था क्योंकि इसी दिन ब्रिटेन और मित्र राष्ट्रों ने जापान को आत्म समर्पण करवाकर द्वतीय विश्वयुद्ध जीता था इसलिए इसे दिन भारत को भी सत्ता हस्तांतरित करने का निर्णय लिया गया। अंततः 15 अगस्त 1947 को ब्रिटेन ने भारत को सत्ता हस्तांतरित कर दिया और जैसा कि अंग्रेजों को अंदेशा था यह सब हो जाने के कुछ ही महीने बाद जिन्ना की मृत्यु हो गई।
माउंटबेटन को भी भुगतना पड़ा
बंटवारे के समय माउंटबेटन के नेतृत्व में भारत-पाकिस्तान में जो कत्लेआम हुआ था उसकी सजा उन्हें बाद में ही सही लेकिन भुगतनी जरूर पड़ी। 27 अगस्त 1979 को माउंटबेटन को उसके परिवार के कुछ सदस्यों के साथ बम से उड़ा दिया गया। माउंटबेटन की हत्या का आरोप आयरलैंड की आयरिश रिपब्लिकन आर्मी पर लगा जो कि वर्षों से स्वाधीनता के लिए संघर्षरत थी।
बंटवारे के समय माउंटबेटन के नेतृत्व में भारत-पाकिस्तान में जो कत्लेआम हुआ था उसकी सजा उन्हें बाद में ही सही लेकिन भुगतनी जरूर पड़ी। 27 अगस्त 1979 को माउंटबेटन को उसके परिवार के कुछ सदस्यों के साथ बम से उड़ा दिया गया। माउंटबेटन की हत्या का आरोप आयरलैंड की आयरिश रिपब्लिकन आर्मी पर लगा जो कि वर्षों से स्वाधीनता के लिए संघर्षरत थी।