क्या है इज्तिमा जिसके लिए लाखों मुसलमान बुलंदशहर पहुंचे थे? || What is the Ijtima for which millions of Muslims had reached Bulandshahar?

Post Write By-UpendraArya
उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर ज़िले में कुछ दिनों पहले मुसलमानों के एक धार्मिक संगठन तब्लीग़ी जमात ने इज्तिमा का आयोजन किया था.
तब्लीग़ी जमात सुन्नी मुसलमानों का एक संगठन है. तीन दिनों तक चलने वाले इस इज्तिमा में लाखों मुसलमान शामिल हुए थे.
लेकिन इस धार्मिक सभा के आख़िरी दिन बुलंदशहर ज़िले में ही गोहत्या के नाम पर भड़की हिंसा में एक पुलिस अधिकारी समेत दो व्यक्तियों की मौत हो गई.
इसके बाद एक निजी चैनल सुदर्शन टीवी के प्रधान संपादक ने ट्विटर पर इस धार्मिक सभा में "बवाल होने" की ख़बर फैलाई.



लेकिन बुलंदशहर पुलिस ने इस ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए इज्तिमा को लेकर स्थिति स्पष्ट की और भ्रामक ख़बरें ना फैलाने की अपील की.
इज्तिमा की जगह और जहां पर पुलिस अफ़सर की हत्या हुई उन दोनों जगहों में पुलिस के अनुसार लगभग 40-45 किलोमीटर का फ़ासला था.
हालांकि, इसके बाद भी सोशल मीडिया पर इज्तिमा को लेकर काफ़ी भ्रम की स्थिति देखी जा रही है.
उदाहरण के लिए, सिद्धार्थ तिवारी नाम के ट्विटर यूज़र @Siddhartha1226 ने सुदर्शन टीवी की ख़बर पर उत्तर प्रदेश पुलिस से कुछ सवाल पूछते नज़र आ रहे हैं.
ऐसे में बीबीसी ने बुलंदशहर में आयोजित हुए इज्तिमा में शामिल होने वाले मौलाना नूर-अल-हसन राशिद से बात करके इस धार्मिक सभा से जुड़े कुछ सवालों के जवाब जानने की कोशिश की.

इज्तिमा क्या है?

इज्तिमा अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका मतलब कई लोगों का एक जगह पर इकट्ठा होना है.
बीबीसी से बात करते हुए मौलाना नूर-अल-हसन राशिद तब्लीग़ी जमात के बारे में समझाते हुए कहते हैं कि इज्तिमा कई तरह के होते हैं जिनमें ज़िले से लेकर देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले इज्तिमा शामिल होते हैं.









मौलाना राशिद बताते हैं, "तब्लीग़ी जमात बीते अस्सी सालों से इज्तिमा का आयोजन करती आ रही है. इस तरह का पहला जलसा साल 1940 में आयोजित हुआ था. और हर दो साल पर देश भर में अलग-अलग जगहों पर इस तरह के जलसों का आयोजन होता रहता है जिनमें देश भर से तमाम मुसलमान एकजुट होते हैं."


इज्तिमा में कितने मुसलमान शामिल हुए?

इस साल का आयोजन दिल्ली से कुछ दूर उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर ज़िले में हुआ था. इस सम्मेलन में शामिल होने वाले मुसलमानों की संख्या को लेकर भी भ्रम की स्थिति है.
कुछ का कहना है कि इसमें क़रीब पांच लाख के आस-पास लोग आए थे जबकि सोशल मीडिया पर किए गए कई पोस्ट का दावा है कि इस दौरान बुलंदशहर में बीस लाख से भी ज़्यादा मुसलमान थे.
सम्मेलन में शामिल मुसलमानों की संख्या के बारे में मौलाना राशिद कहते हैं, "तीन दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम में मैं ख़ुद शामिल हुआ था. इस कार्यक्रम में लाखों मुसलमान शामिल हुए थे."
"लेकिन अगर बेहद एहतियात के साथ बताया जाए तो बुलंदशहर के इज्तिमा में लगभग 28 से 30 लाख मुसलमान आए थे."




इज्तिमा में क्या सिर्फ़ मुसलमान आते हैं?
इज्तिमा में शामिल होने वाले लोगों के धर्म को लेकर मौलाना राशिद बताते हैं, "ऐसे कार्यक्रमों में सिर्फ़ मुसलमान नहीं, बल्कि अलग-अलग धर्मों के लोग भी शामिल होते हैं, वे इस्लाम को समझने के मक़सद से हमारे कार्यक्रम में आते हैं. और कहीं भी कोई ऐसी स्थिति नहीं पैदा करता जिससे दूसरे धर्मों के लोगों को असुविधा का अहसास हो."
"इज्तिमा इससे पहले भोपाल में और बांग्लादेश में आयोजित होती रही है जहां लाखों लोग शामिल होते हैं. इससे पहले औरंगाबाद और यूपी के संभल में इसी तरह के प्रोग्राम का आयोजन हो चुका है".
भोपाल में आयोजित इज्तिमा में मध्यप्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हो चुके हैं.



इज्तिमा में क्या होता है?

सोशल मीडिया पर लोगों को ये सर्च करते देखा जा रहा है कि आख़िर इज्तिमा में होता क्या है और मुसलमानों की इतनी बड़ी आबादी आख़िर क्यों एकजुट होती है.
मौलाना राशिद से जब ये सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, "इज्तिमा के दौरान उन बातों पर चर्चा होती है जिनसे एक मुसलमान दीन के रास्ते पर बेहतर ढंग से चल सके. इस दौरान शादी के दौरान होने वाले ख़र्चों को लेकर चर्चाएं होती हैं, जैसे ख़र्चीली शादियों से समाज को किस तरह के नुक़सान होते हैं और इस्लाम इस बारे में क्या कहता है."
इसी प्रोग्राम के दौरान बड़ी संख्या में निकाह भी संपन्न कराए गए जिनमें किसी तरह का कोई दहेज नहीं लिया दिया गया. वहां कुछ इस तरह की चर्चाएं होती हैं कि इस्लाम के मुताबिक़ किसी को अपना रोज़ाना का जीवन कैसे जीना चाहिए.

मौलाना राशिद के मुताबिक़, बुलंदशहर में आयोजित इज्तिमा के दौरान 1450 निकाह संपन्न कराए गए.
बुलंदशहर में हुए इस इज्तिमा में हुए प्रवचनों को यहां सुना जा सकता है.




इज्तिमा में राजनीतिक बयानबाज़ी?

एक सवाल ये भी है कि क्या इस तरह के जलसे में शामिल होने वाले लोगों की धार्मिक भावनाएं भड़काने वाली बयानबाज़ी की जाती है.
इस सवाल के जवाब में मौलाना राशिद कहते हैं, "ये तो बिलकुल ही ग़लत है. ऐसे जलसे में सियासत से जुड़ी बातें नहीं की जाती हैं. बल्कि वहां तो लोगों को माफ़ कर देने से जुड़े संदेश दिए जाते हैं."
"वहां कहा जाता है - कोई क्या करता है उसे वो करने दो, तुम्हारा पैग़ाम मुहब्बत है, जहां तक पहुंचे यही पैग़ाम दो."

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