Post Write By-UpendraArya
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के मुताबिक़ जीसैट-11 का वज़न 5,854 किलोग्राम है और ये उसका बनाया अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट है.
ये जियोस्टेशनरी सैटेलाइट पृथ्वी की सतह से 36 हज़ार किलोमीटर ऊपर ऑरबिट में रहेगा. सैटेलाइट इतना बड़ा है कि इसका हर सोलर पैनल चार मीटर से ज़्यादा लंबा है, जो एक सेडान कार के बराबर है.
जीसैट-11 में केयू-बैंड और केए-बैंड फ़्रीक्वेंसी में 40 ट्रांसपोंडर होंगे, जो 14 गीगाबाइट/सेकेंड तक की डेटा ट्रांसफ़र स्पीड के साथ हाई बैंडविथ कनेक्टिविटी दे सकते हैं.
क्यों ख़ास है जीसैट-11 सैटेलाइट?
जाने-माने विज्ञान पत्रकार पल्लव बागला ने बताया, ''जीसैट-11 कई मायनों में ख़ास है. ये भारत में बना अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट है.''
लेकिन भारी सैटेलाइट का मतलब क्या है? उन्होंने कहा, ''भारी सैटेलाइट का मतलब ये नहीं है कि वो कम काम करेगा. कम्युनिकेशन सैटेलाइट के मामले में भारी होने का मतलब है कि वो बहुत ताक़तवर है और लंबे समय तक काम करने की क्षमता रखता है.''
बागला के मुताबिक़ अब तक बने सभी सैटेलाइट में ये सबसे ज़्यादा बैंडविथ साथ ले जाना वाला उपग्रह भी होगा.
और इससे पूरे भारत में इंटरनेट की सुविधा मिल सकेगी. ये भी ख़ास बात है कि इसे पहले दक्षिण अमरीका भेज दिया गया था लेकिन टेस्टिंग के लिए दोबारा बुलाया गया.
जीसैट-11 लॉन्च क्यों टला था?
पहले जीसैट-11 को इसी साल मार्च-अप्रैल में भेजा जाना था लेकिन जीसैट-6ए मिशन के नाकाम होने के बाद इसे टाल दिया गया. 29 मार्च को रवाना जीसैट-6ए से सिग्नल लॉस की वजह इलेक्ट्रिकल सर्किट में गड़बड़ी है.
ऐसी आशंका थी कि जीसैट-11 में यही दिक़्क़त सामने आ सकती है, इसलिए इसकी लॉन्चिंग को रोक दिया गया था. इसके बाद कई टेस्ट किए गए और पाया गया कि सारे सिस्टम ठीक हैं.
बागला ने बताया, ''पांच दिसंबर को भारतीय समयानुसार दो बजकर आठ मिनट पर इसे भेजा जाएगा.''
ख़ास बात ये है कि इसरो का भारी वज़न उठाने वाला रॉकेट जीएसएलवी-3 चार टन वज़न उठा सकता है. चार टन से ज़्यादा वज़न वाले इसरो के पेलोड फ़्रेंच गयाना में यूरोपियन स्पेसपोर्ट से भेजे जाते हैं.
इंटरनेट स्पीड मिलेगी?
पल्लव बागला ने बताया कि इसरो के पास क़रीब चार टन वज़नी सैटेलाइट को भेजने की क्षमता है लेकिन जीसैट-11 का वज़न छह टन के क़रीब है.
ये पूछने पर कि वो वक़्त कब आएगा जब भारत से ही इतने वज़न के सैटेलाइट भेजे जा सकेंगे, बागला ने कहा, ''आप हर चीज़ बाहर नहीं भेजना चाहते लेकिन जब कोई बड़ी चीज़ होती है तो ऐसा करना पड़ता है.''
''हम बस से सफ़र करते हैं लेकिन उसे अपने घर में नहीं रखते ना. जब कभी ज़रूरत होती है तो हम उसे किराए पर लेते हैं. अभी इसरो ख़ुद भारी सैटेलाइट भेजने पर विचार नहीं कर रहा है लेकिन कुछ साल बाद जब सेमी-क्रायोजेनिक इंजन तैयार हो जाएगा, तब ऐसा हो सकता है.''
ऐसा भी कहा जा रहा है कि ये सैटेलाइट इंटरनेट स्पीड मुहैया कराएगी, इस पर बागला ने कहा, ''सैटेलाइट से इंटरनेट स्पीड तेज़ नहीं होती क्योंकि वो आपको ऑप्टिकल फ़ाइबर से मिलती है.''
''लेकिन इस सैटेलाइट से कवरेज के मामले में फ़ायदा होगा. जो दूरदराज़ के इलाक़े हैं, वहां इंटरनेट पहुंचाने में फ़ायदा होगा. कई ऐसी जगह हैं, जहां फ़ाइबर पहुंचाना आसान नहीं है, वहां इससे इंटरनेट पहुंचाना आसान हो जाएगा.''
कैसे काम करेगा सैटेलाइट?
इसके अलावा एक और फ़ायदा ये है कि जब कभी फ़ाइबर को नुक़सान होगा, तो इंटरनेट पूरी तरह बंद नहीं होगा और सैटेलाइट के ज़रिए वो चलता रहेगा.
इसरो अपने जीएसएलवी-3 लॉन्चर की वज़न उठाने की क्षमता पर भी काम कर रहा है. जीसैट-11 असल में हाई-थ्रूपुट कम्युनिकेशन सैटेलाइट है, जिसका उद्देश्य भारत के मुख्य क्षेत्र और आसपास के इलाक़ों में मल्टी-स्पॉट बीम कवरेज मुहैया कराना है.
ये सैटेलाइट इसलिए इतनी ख़ास है कि ये कई सारे स्पॉट बीम इस्तेमाल करता है, जिससे इंटरनेट स्पीड और कनेक्टिविटी बढ़ जाती है.
स्पॉट बीम के मायने सैटेलाइट सिग्नल से हैं, जो एक ख़ास भौगोलिक क्षेत्र में फ़ोकस करती है. बीम जितनी पतली होगी, पावर उतना ज़्यादा होगी.
ये सैटेलाइट पूरे देश को कवर करने के लिए बीम या सिग्नल को दोबारा इस्तेमाल करता है. इनसैट जैसे पारंपरिक सैटेलाइट ब्रॉड सिग्नल बीम को इस्तेमाल करती है, जो पूरे इलाक़े को कवर करने के लिए काफ़ी नहीं है.
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