जयपुर में जीक़ा वायरस का पहली बार नमूदार होना और इसका बिल्कुल अचानक से आ धमकना चिकित्सा विभाग और प्रशासन के लिए एक गम्भीर चुनौती थी. एक ऐसी चुनौती जिसका सामना उन्होंने पहले कभी नहीं किया था.
जयपुर ने डेंगू और चिकनगुनिया जैसे वायरस का पहले कई बार मुक़ाबला किया था लेकिन जीक़ा वायरस के बारे में यहां के मेडिकल स्टाफ़ ने केवल सुन रखा था.
जीक़ा वायरस का पहला पॉज़िटिव केस 22 सितम्बर को सामने आया. पीड़िता थीं शकुंतला देवी नाम की एक 84 वर्ष की महिला. इस केस ने सब को चौंका दिया. हैरान कर दिया. परेशान कर दिया.
शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अध्यक्ष डॉक्टर हर्षवर्धन कहते हैं, "मैंने जैसे ही इस महिला के बारे में सुना अपने अस्पताल के स्टाफ़ को अलर्ट किया. ये महिला हमारे अस्पताल के पास ही रहती थी. उसका इलाज यहाँ नहीं हो रहा था लेकिन हमें चौकन्ना होना पड़ा क्योंकि वो इसी इलाक़े की रहने वाली थी."
शकुंतला देवी का केस सामने आने के बाद पूरा प्रशासन हरकत में आ गया. स्वास्थ्य मंत्री काली चरण सर्राफ़ के अनुसार जीक़ा के ख़िलाफ़ मुक़ाबला युद्ध स्तर पर शुरू कर दिया गया.
शास्त्री नगर में 65,000 परिवार हैं. आबादी को प्रशासन ने आठ क्षेत्रों में बांट दिया. हर क्षेत्र में एक वॉर रूम बनाया गया, जहाँ सुबह से डाक्टर और सामाजिक कार्यकर्ताओं की टीमें आती हैं और घरों का सर्वेक्षण करने निकल जाती हैं.
शास्त्री नगर सबसे अधिक प्रभावित
जयपुर का शास्त्री नगर मुंबई का धारावी है. अंतर ये है कि शास्त्री नगर में कमरतोड़ ग़रीबी है. जी हाँ, धारावी यहां के लोगों के लिए स्वर्ग जैसा होगा.
यहां इंसान जानवरों बदतर ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर हैं. यहां कई कच्ची बस्तियां हैं. सभी घनी आबादी वाली हैं. गंदगी हर जगह है. इन कच्ची बस्तियों में लोगों के चेहरों पर मायूसी और बेबसी साफ़ दिखायी देती है.
अच्छी शिक्षा की कमी में यहां अफ़वाहों का बाज़ार फ़ौरन गर्म हो जाता है. यहां ज़ीका के बारे में सबसे बड़ी अफ़वाह ये फैली कि ये छूत की बीमारी है. दूसरी ये कि इससे जान भी जा सकती है.
इस पसमंज़र में प्रशासन के लिए जीक़ा वायरस के ख़िलाफ़ काम करना आसान नहीं था. यहीं जीक़ा के 32 पॉज़िटिव केसेज़ में से 29 रहते हैं.